सोमवार, 17 सितंबर 2018

देश की जनता द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री को 'हैप्पी बर्थ डे' कहने में किस बात की शर्म ?

देश की जनता द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री को 'हैप्पी बर्थ डे' कहने में किस बात की शर्म ?
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दुनिया भर से तमाम राष्ट्रप्रमुखों ने,उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मोदीजी को जन्म दिन की शुभकामनएं दीं। लगभग पूरे भारत में मोदी जी के जन्म दिन की गूँज है!इस अवसर पर मैं भी तहेदिल से मोदीजी को उनके जन्मदिन पर बधाई देता हूँ, उनके दीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ!
जिन विपक्षी नेताओं ने या राजनैतिक दलों ने मोदी जी को किसी वजह से शुभकामनाएँ न दीं हों या देनाही न चाहते हों,उनसे निवेदन है कि कम से कम जन्मदिन को तो राजनीति से दूर रखें ! जिन्होंने मोदीजीको आज बधाई नहीं दी,वे विरोधी नेता और दल यह सोचें कि क्या मोदी जी उनके प्रधान मंत्री नहीं हैं ?
वेशक मोदीजी-अम्बानी,अडानी,जियो टेलीकॉम ,भाजपा,संघ परिवार ,कारपोरेट कम्पनियों और जिन-जिन के अच्छे दिन आये हैं उन सबके परमप्रिय प्रधानमंत्री हैं। लेकिन भारतीय संविधान के मुताबिक तो वे हम सभी के प्रधान मंत्री हैं ! इसलिए जन्म दिन की शुभकामनाएँ देने का जितना हक सत्तावालों को है ,उतना ही हक उन सभी को है जो चुनाव हार गए हैं और विपक्ष में हैं!क्योंकि आम चुनाव में जिसे बहुमत मिलता है वही पूरे देशका एकमात्र प्रधानमंत्री हुआ करता है। और तब जो नेता या दल चुनाव हार जाते हैं ,उनके मतदाता- सपोर्टर यह नहीं कह सकते कि उनका कोई प्रधानमंत्री नहीं है। दरसल उनके प्रधानमंत्री भी मोदी जी ही हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति में भी यही रीति है कि जो जीता वही सिकन्दर !
इसलिए जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिये हर-हर मोदी जपने में की जरूरत नही है!किन्तु देशकी जनता द्वारा निर्वाचित देश के प्रधानमंत्री को 'हैप्पी बर्थ डे'कहने में किस बात की शर्म ? मेरे ख्याल से तो सभी भारत वासियों को एक स्वर में तहेदिल से अपने प्रधानमंत्री को 'जन्म दिन' की बधाई देनी चाहिए !साथ ही सभ्य तरीके से उनकी पूंजीवाद परस्त नीतियों और बड़बोलेपन का विरोध करना चाहिये!
सवाल उठ सकता है कि जिनको महँगाई ने मारा है ,जिन्हें सूखा-बाढ़ और व्यापम ने मारा है ,मोदीजी उनकेभी प्रधानमंत्री तो अवश्य हैं ,किन्तु राजधर्म कहाँ है ? जो अल्पसंख्यक हैं ,जो बीफ भक्षणके नाम पर धिक्कारे जाते हैं , जो दलित हैं और मृत पशु उठाने के नाम पर मोदी जी के गुजरात में मार दिए जाते हैं, मोदी जी उनके भी प्रधान मंत्री तो हैं किन्तु उन्हें प्रधानमंत्री का सहयोग क्यों नहीं मिलता ? जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिंता करते हैं मोदीजी उनके भी प्रधानमंत्री हैं ,जो सत्ताधारियों की असहिष्णुता के खिलाफ बोलते हैं ,मोदी जी उनके भी प्रधानमंत्री हैं, जो साम्प्रदायिक उन्माद और अंधश्रद्धा जनित पाखण्डवाद का विरोध करते हैं मोदी जी उनके भी प्रधान मंत्री हैं तो उनकी हत्या पर मौन क्यों रहते हैं ? 'राष्ट्रवाद' का आह्वान है कि इन सवालों पर कमर कस के रखें,खूब संगठित संघर्ष भी जारी रखें। लेकिन निर्वाचित प्रधानमंत्री को दीर्घायु होने की शुभकामनाएं अवश्य दें।

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