यद्द्पि मैं राजनीतिशास्त्र का अध्येता नहीं हूँ फिरभी सरसरी तौरपर इतना अवश्य जानता हूँ कि नमक से नमक नही खाया जाता!याने पूँजीवाद का विकल्प पूँजीवाद नहीं होता!याने कांग्रेसकी जगह भाजपा को नही बल्कि सर्वहारावर्ग के हरावल दस्तोंका शासन होना चाहिये था!
मुझे यह भी मालूम है कि बिना किसी ठोस वैज्ञानिक विचारधारा और वर्ग चेतना के कोई समग्र क्रांति सम्भव नहीं। मैं यह भी जानता हूँ कि बिना किसी क्रान्ति के कोई 'व्यवस्था परिवर्तन' भी सम्भव नहीं। मात्र २३ साल की उम्र में शहीद भगतसिंह यह सब जान गए थे। मैंने उन्ही के लिखे छुटपुट आलेखों से यह सब जाना है। हालाँकि फाँसी पर चढ़ने से पहले भगतसिंह जितना कुछ जान चुके थे,उसका एक चौथाई भी मैं अबतक ठीकसे नहीं जान पाया हूँ। लेकिन खेद की बातहै कि अधिकांस पूँजीवादी दलों के नेता इसका दशमांश भी नहीं जानते। जो तिकड़म से या सौभाग्य से सत्ता पा गए,वे भी इस बाबत कुछ नहींजानते। यदि जानते होते तो वे 'नमक से नमक नहीं खाते'। कभी दलित तो कभी सवर्ण को नही उकसाते!देश की जनता क्रांतिकारी विचारों से लेस होती, यदि शहीद भगतसिंह के विचारों को थोड़ा भी समझती,तो आज देश में जातिवादऔर सांप्रदायिकताका नंगा नाच नही होता!बल्कि इनको लतियाकर दिल्लीमें 'फ़्रांसिसी क्रान्ति' की तरह,महान अक्टूबर क्रांति की तरह कोई 'क्रांतिकारी सरकार' बनाती
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