गुरुवार, 20 सितंबर 2018

लोकतंत्र के चारों खम्बे, पथ विचलित नादानी में।

माल गपागप खाएं चोट्टे,
कसर नहीं हैवानी में।
मंद मंद मुस्काए हुक्मराँ,
गई भैंस जब पानी में।।
सुरा सुंदरी पाए सब कुछ,
सत्ता की गुड़ धानी में।
जनगणमन को मूर्ख बनाते,
शासकगण आसानी में।।
लोकतंत्र के चारों खम्बे,
पथ विचलित नादानी में।
लुटिया डूबी अर्थतंत्र की,
मुल्क हुआ हैरानी में।।
व्यथित किसान छीजते मरते,
क़र्ज़ की खींचातानी में।
कारपोरेट पूँजी की जय जय,
होती ऐंचकतानी में।।
निर्धन खूब लड़ें आपस में,
जाति धर्म की घानी में।
सिस्टम अविरल जुटा हुआ है,
काली कारस्तानी में।।
बलिदानों की गाथा भूले,
जो लिखी है लहू लुहानी में।
संघर्षों की दिशा सही है ,
भगतसिंह की वाणी में।।
श्रीराम तिवारी

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