मोदी जी को ज्ञात हो कि उनसे पहले भी भारत मैं जितनी भी सरकारें रहीं हैं और उनकै दौर में भी पाकिस्तानी हुक्मरान घोर भारत विरोधी हुआ करते थे! किंतु तब भी भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत का सिलसिला कभी बंद नही हुआ !
किंतु मोदी जी ने कभी स्वीकार ही नही किया कि पूर्ववर्ती नेतत्व ने ,खास तौर पर इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को भारत की ताकत का एहसास कराया था!यह क्रतघ्नता है!आज भले ही पाकिस्तानी हुक्मरान पुराने भारत विरोधी एजेंडे पर ही कायम हों,किंतु इमरान खान और परवेज मुसर्रफ या जिया उल हक में काफी फर्क है!फिर भी भारत के मौजूदा शासक न तो कष्मीर में अमन ला पाये और न ही पाकिस्तान से बेहतर द्विपक्षीय संबंध बना पाये!क्या इस असफलता में भी विपक्ष का या राहुल गांधी का ही कसूर है?
मेरे एक वरिष्ठ सहकर्मी और ट्रेड यूनियन साथी अक्सर कहा करते थे कि ''जिस तरह प्राकृतिक रूप से गंगा मैली नहीं है बल्कि उसे कुछ गंदे लोग मैला करते रहते हैं ,उसी प्रकार यह राजनीति भी जन्मजात गन्दी नहीं है, बल्कि स्वार्थी लोग ही इसे गंदा करते रहते हैं। जिस तरह धर्मांध और संकीर्ण लोग गंगा को गटरगंगा बनाने में जुटे रहते हैं ,उसी तरह अधिकांश फितरती, धूर्त लोग इस राजनीतिक गंगा को गटरगंगा बनाने में जुटे रहते हैं। ये धूर्त लोग सत्ता में आने के लिए जाति ,धर्म-मजहब और 'राष्ट्रवाद' का वितंडा खड़ा करते हैं, लोक लुभावन वादे करते हैं और जब ये सत्ता में आजाते हैं तो वे खुद और उनके सहयोगी भस्मासुर बन जाते हैं। जब चुनावी वादे पूरे नहीं हो पाते हैं ,तो वे नए-नए बहाने खोजने लगते हैं। इन हालात में जनता की एकजुटता ही देश के स्वाभिमान की रक्षा कर सकती है। सेना या किसी नेता या राजनैतिक दल की ओकात नहीं कि सीमाओं की रक्षा कर सके !
नीतिविहीन रीढ़विहीन नेतत्व में कूबत नहीं कि देश के स्वाभिमान की रक्षा कर सके। जो नेतत्व जनाक्रोश से बचने के लिए बचाव की घटिया तरकीबें खोजने में जुटा हो, जो नेतत्व अपने देश की सीमाओं पर दुश्मन देश के हमले रोकने में लगातार नाकाम रहा हो ,जो नेतत्व अपनी खीज -खिसियाहट निकालने के लिए सिर्फ 'बातों का धनी ' हो ,जो नेतत्व अपने देश के लोगों को अँधेरे में रखकर रातों-रात शरीफ के घर जाकर चाय पीता रहा हो , जो नेतत्व अतीत में दावे और डींगे मारता रहा हो ,जो नेतत्व अपनी असफलता की शर्मिंदगी ढकने की कुचेष्टा करने में लगा हो ,ऐसे नेतत्व के 'मन की बात' पर विश्वास करना आत्मघात है।जनता को चाहिये कि किसी खास तुर्रमखां के भरोसे न रहे। जो चौकीदार सोते हुए मार दिए जाएँ ,जनता उनके भरोसे कदापि न रहे। देशके सभी नर-नारी और सरकारी सेवक अपनी-अपनी ड्यूटी ईमानदारी से करें। पुलिस ,डाक्टर,अफसर ,वकील ,बाबू और जज संकल्प लें कि भारत का गौरव और आत्मबल बढ़ाने के लिए न रिश्वत देंगे और न रिश्वत लेंगे।जनता भी स्वयमेव इसका अनुशरण करे। देशके नेता और दल भी राष्ट्रीय संकट मानकर 'देशभक्तिपूर्ण आचरण करे।
जिन मिलिट्री वालोंने इंदौर में कई बार उधम मचाया ,वियर बार में लड़कियों को छेड़ा ,विजयनगर थाना तोडा था और जिन्होंने ऋषिराज हॉस्टल के निर्दोष छात्रों को वेवजह कूटा था ,जिन आर्मी अफसरोंने महू से लेकर इंदौर विजयनगर तक -राह चलते सिविलियन को कुत्ता समझकर मारा-पीटा ,वे मिलिटरीवाले अब अपना शौर्य -जौहर पाकिस्तान के खिलाफ क्यों नहीं दिखाते ? हमारे ये जाँबाँज फौजी क्यों नहीं पाकिस्तान के किसी आर्मी बेस पर वैसा ही हमला कर देते ,जैसा की पाकिस्तान के फौजी भारतके खिलाफ पठानकोट ,उरी ,उधमपुर में करते हैं ? हमारे बहादुर फौजी अपने बाहुबल का जौहर सिविलियन भाइयों पर दिखने के बजाय या पुलिस पर दिखाने के बजाय सीमाओं पर जाकर क्यों नहीं दिखाते ? सीमाओं पर अधिकांस भारतीय फौजी सोते हुए ही क्यों मारे जाते हैं ? उरी आर्मीबेस तक पहुँचने वाले पाकिस्तानी आतंकियों को किसी जागते हुए भारतीय फौजी के दर्शन क्यों नहीं हुए ? इन सवालों से मुँह मोड़कर और 'राष्ट्रवाद' की कोरी डींगे हांकने से पाकिस्तान के मंसूबों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान को नाथना है तो ' इंदिरा गाँधी 'से सीखो !
इंदिराजी ने सिर्फ भारतीय सेना के भरोसे पाकिस्तान से पंगा नहीं लिया था। उन्होंने बँगला देश के मुजीव जैसे नेताओं और बँगला मुक्तिवाहनी को आगे करके ,सोवियत संघ की ताकत को यूएनओ में आगे करके,भारत के पूंजीपति वर्ग को पाकिस्तान की आर्थिक नाके बंदी में झोंककर , १९७१ में पाकिस्तान को चीर डाला था। तब भारतीय सेना की भूमिका भी बहुत शानदार रही थी । आज के पूँजीपति और व्यापारी सिर्फ अपनी दौलत बढ़ाने में व्यस्त हैं । ये सिर्फ मुनाफाखोरी ,मिलावट ,कालाधन और मेंहगाई ही बढ़ाते रहते हैं। नेतत्व की तदर्थ और अनिश्चयवाली नीतियों के कारण भारत खतरे में है। सत्ता पक्ष को कांग्रेस मुक्त भारत चाहिए , विपक्ष को 'संघ' मुक्त भारत चाहिए ,जातिवादियों को आरक्षण चाहिए और धर्म-मजहब वालों को 'नरसंहार'चाहिए। किन्तु जनता को यदि अमन-खुशहाली चाहिए तो आइंदा इंदिराजी जैसा सच्चा देशभक्त नेतत्व ही चुने ! बड़बोले जुमलेबाजों से बचकर रहे। इसके साथ -साथ इस भृष्ट सिस्टम को भी तिलांजलि देनी होगी। तभी भारत की सीमाओं पर स्थाई शांति हो सकेगी।
किसी भी क्रांति के बाद ईजाद एक बेहतर सिस्टम तभी तक चलन में जीवित रह सकता है ,जब तक अच्छे लोग राजनीति में आते रहें। और जब तक कोई 'महान क्रांति'का आगाज न हो जाये ! इसके लिए देशभक्ति वह नहीं जो सोशल मीडिया पर दिख रही है। बल्कि सच्ची देशभक्ति वह है कि हम अपना -अपन दायित्व निर्वहन करते हुए कोई भी ऐंसा काम न करें जिससे देश का अहित हो। सरकारी माल की चोरी ,सराकरी जमीनों पर कब्जे, आयकर चोरी,निर्धन मरीजों के मानव शरीरअंगों की चोरी ,हथियारों की तस्करी ,मादक द्रव्यों की तस्करी और शिक्षा में भृष्टाचार इत्यादि हजारों उदाहरण है जहाँ देशद्रोही बैठे हैं। इनमें से अधिकांस लोग अपने पाप छिपाने के लिए सत्ताधारी पार्टी के साथ हो जाते हैं। इसलिए सत्ताधारी पार्टी से देश की सुरक्षा को ज्यादा खतरा है।
मुझे भली भांति ज्ञात है कि मेरे कुछ खास मित्र ,सुहरदयजन , शुभचिंतक और सपरिजन लोग मेरे आलेखों को पंसद नहीं करते। लेकिन जो पसंद करते हैं वे सिर्फ इसलिए प्रशंसा के पात्र नहीं हैं कि वे मुझे 'लाइक' करते हैं , बल्कि वे इसलिए आदर और सम्मान के पात्र हैं कि उनका नजरिया वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है और वे सत्य,न्याय के साथ हैं ! मेरे आलेख और कविताएँ नहीं पसंद करने वालों को मैंने तीन श्रेणियों में बाँटा है। एक तो वे जो यह मानते हैं कि राजनीति ,आलोचना और व्यवस्था पर सवाल उठाना उन्हें पसंद उन्हीं। दूसरे वे जो घोर धर्माधता के दल-दल में धसे हुए हैं और साम्प्रदायिक संगठनों द्वारा निर्देशित सोच से आगे कुछ भी देखना-सुनना ,पढ़ना नहीं चाहते।और सांसारिक तर्क-वितरक पर कुछ भी लिखना -पढ़ना नकारात्मक कर्म समझते हैं । तीसरे वे निरीह प्राणी हैं जो कहने सुनने को तो वामपंथी राजनीति में नेतत्व कारी भूमिका अदा करते हैं ,किन्तु व्यवहार में वे दक्षिणपंथी कटटरपंथ के आभाषी प्रतिरूप मात्र हैं। राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की उनकी समझ बड़ी विचित्र है। उन्हें हर अल्पसंख्य्क दूध का धुला नजर आताहै ,किन्तु हर हिन्दू धर्मावलम्बी उन्हें पाप का घड़ा दीखता है। पता नहीं दास केपिटल के किस खण्ड में उन्होंने पढ़ लिया कि भारत के सारे सवर्ण लोग जन्मजात बदमास और बेईमान हैं। उनकी नजर में हरेक आरक्षण धारी ,दूध का धुला और परम पवित्र हैं।
भारत में संकीर्ण मानसिकता के वशीभूत होकर दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों धड़े एक-दूसरे को फूटी आँखों देखना पसन्द नहीं करते। वामपंथ के दिग्गज,नेताओं,प्रगतिशील साहित्यकारों को लगता है कि धरती की सारी पुण्याई सिर्फ उनके सिद्धांतों,नीतियों और कार्यक्रमों में ही निहित है। दक्षिणपंथी सम्प्रदायिक खेमें के विद्व्तजन गलतफहमी में हैं कि भारतीय 'राष्ट्रवाद'उनके बलबूते पर ही कायम है और देश के अच्छे-बुरे का भेद सिर्फ वे ही जानते हैं । मेरा अध्यन और अनुभव कहता है कि 'लेफ्टफ्रॉन्ट'के पास जो 'सर्वहारा अंतर्राष्टीयतावाद का सिद्धांत है , मानवता के जो सिद्धांत -सूत्र और नीतियाँ हैं, बेहतरीन मानवीय मूल्य हैं और शोषण से संघर्ष का जो जज्वा है ,भारत में या संसार में वह और किसी विचारधारा में ,किसी धर्म-मजहब में कहीं नहीं है। लेकिन वामपंथ में भी अनेक खामियाँ हैं। परन्तु विचित्र किन्तु सत्य यह है कि केवल वामपंथी ही हैं ,जो 'आत्मविश्लेषण'या आत्मालोचना को स्वीकार करते हैं।लेकिन दक्षिणपंथी ,प्रतिक्रियावादी और पूँजीवादी केवल प्रशंसा पसंद करते हैं ,और इसके लिए वे मीडिया को पालते हैं। वे शोषण की व्यवस्था की रक्षा करते हैं, ताकि यह भृष्ट निजाम उनके कदाचरण को ,उनके राजनैतिक,आर्थिक ,सामाजिक और मजहबी हितों की हिफाजत करता रहे। इस तरह वाम- दक्षिण दोनों ध्रुवों में एक दूसरे के प्रति अनादर भाव और अविश्वास होने से भारत में वास्तविक 'राष्ट्रवादी चेतना ' का विकास अवरुद्ध है।
राजनीति का एक रोचक पहलु यह भी है कि इसकी वजह से भारत गुलाम हुआ था, और इसीकी वजह से वह आजाद भी हो गया । इसके अलावा और भी कई उदाहरण हैं कि इसी राजनीति की वजह से दुनिया अधिकांश देशों से क्रूर सामंतशाही -राजशाही खत्म हो गई। और उसकी जगह अब अधिकान्स दुनिया में डेमोक्रेसी अथवा लोकतंत्र कायम है। स्कूल कालेजों में राजनीति पढ़ना,पढ़ाना अलहदा बात है,मौजूदा 'गन्दी राजनीति' को भोगना जुदा बात है। व्यवहारिक किन्तु करप्ट -राजनीति सीखने-समझने के लिए तो भारतमें बहुतेरे संगठन मौजूद हैं। किन्तु राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक राजनीति का ककहरा सीखने के लिए भारत में सरकारी तौर पर कोई शैक्षणिक पाठ्यक्रम नहीं है। आरएसएस जैसे गैर संवैधानिक संगठन जरूर दावा करते हैं कि वे नयी पीढ़ी को राष्ट्रवाद सिखाने के लिए बहुत कुछ ,करते रहते हैं। लेकिन अपनी कट्टरवादी साम्प्रदायिक सोच के कारण वे दुनिया भर में बदनाम हैं। इसके विपरीत भारत का ट्रेड यूनियन आंदोलन काफी कुछ बेहतर सिखाता है। आरएसएस वाले तो केवल हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ही सीखते-सिखाते होंगे,लेकिन भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र [सीटू] वाले तो धर्मनिरपेक्ष -राष्ट्रवाद.अन्तर्राष्टीयतावाद,जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षताके साथ-साथ फ्री एन्ड फेयर डेमोक्रेटिक फंकशनिंग की भी शिक्षा देते हैं। वे न केवल देशभक्ति ,शोषण से मुक्ति ,अन्याय से संघर्ष बल्कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सन्निहित सभी दिशा- निर्देशों के अनुशरण की वकालत करते हैं। उनकी स्पष्ट समझ है कि आतंकवाद के जनक साम्राज्यवाद और मजहबी कट्टरता दोनों ही हैं। केवल आतंकवाद की निंदा करने से या पूँजीवाद को कोसने से ये चुनौतियाँ खत्म नहीं होंगी ! जनता का विराट एकजुट जन-आन्दोंलन , उसकी जनवादी 'अंतर्राष्टीयतावादी' चेतना ही मौजूदा मजहबी आतंक और पाकिस्तानी कारिस्तानी से निपटने में सक्षम है। मजहबी आतंकवाद को सर्वहारा अंतर्राष्टीयतावाद ही रोक सकता है। लेकिन जब तक यह आयद नहीं होता तब तक इंदिराजी वाला रास्ता ही सही है। श्रीराम तिवारी