सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

लोकतंत्रिक व्यवस्था और संविधान से चल रही है.

मध्य युग में जब अरब और यूरोप के लोग धर्म मजहब के नाम पर आक्रामक रूप से क्रूसेडर बन रहे थे,तब भारत के लोग धर्म और अध्यात्म के उच्चतम शिखर पर पहूंच कर 'वसुधैव कुटुम्बकम' और 'सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया' के साथ साथ अहिंसा और विश्वशांति का उद्घोष कर रहे थे! तब भारतके जनगण ने धर्मको व्यक्तिगत आस्था माना और धर्म ग्र्ंथों को सिर्फ मंदिरों तक सीमित रखा!तब भारत के मेहनतकश कारीगरों,शिल्पकारों और किसानों ने इसे सोने की चिड़िया बना दिया था!विज्ञान,कला व वाणिज्य में वेशक हमारे तत्कालीन पूर्वज भारतीय अग्रणी हुआ करते थे!किंतु इस दौर में जबकि सारी दुनिया लोकतंत्रिक व्यवस्था और संविधान से चल रही है,तब हमारे कुछ भारतीय बंधु पुरातन परंपराओं और आस्था की लाठी से देश को हॉंकने में जुटे हुये हैं!

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