रविवार, 28 अक्टूबर 2018

-हिंदी -हिन्दू हिन्दुस्तान की पहचान !

भारत में आकर अंग्रेजों ने अपनी वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति लागू की!लेकिन उनसे पहले तुर्कों,अरबों,मंगोलों और फारसियों ने अपनी मजहबी शिक्षा को पुरातन भारतीय लोक भाषाओं और बोलियों से एकाकार करके शासन-प्रशासन की नई भाषा-उर्दू बनाकर,
इस मुल्क को प्रदान की! चूँकि भारतीय उप महाद्वीप की अपनी खुद की अनेक अर्वाचीन बोलियां औरभाषाएं थीं,जिनमें संस्कृत भाषा सबसे प्रमुखथी!किंतु आक्रमणकारी शासकों ने न केवल संस्कृत भाषा का प्रवाह अवरुद्ध किया,अपितु शिक्षा,स्वास्थ्य ,राजकाज और राजनीति का भी बंटाढार कर डाला।
गुलाम जनता की सामाजिक और भाषाई संकीर्णता ने परिष्कृत संस्कृत भाषा और ततकालीन सधुक्ड़ी हिंदी को सत्यनारायण की कथा,आरती और पूजा पाठ तक सीमित कर लिया । जबकि फारसी,उर्दू ,अंग्रेजी, फ्रेंच इत्यादि भाषायें प्रगतिशीलताका अवतार बन गईं! चूंकि ये भाषाएँ साइंस,टेक्नॉलाजी और राष्ट्रवाद,डेमोक्रेसी,साम्यवाद -क्रांति और समाजवाद जैसे आधुनिक पवित्र शब्दों से लबरेज थीं। इन्ही भाषाओँ के माध्यम से भारत ने साइंस ,टेक्लानाजी पढ़ी और ब्रिटिश समेत दुनिया के नए संविधान पढ़े और आत्मसात किये। बड़े ही विस्मय की बात है कि इन्ही भाषाओँ से भारत को -हिंदी -हिन्दू हिन्दुस्तान की पहचान मिली!
लेकिन हमें आदत सी हो गयी है कि हम हर पुरानी वस्तु ,यहाँ तक कि माता पिता और बुजुर्गों को सम्मान दिया अथवा यदि हमने संस्कृत में कुछ  बोल दिया या लिख दिया तो हम प्रगतिशील नहीं रह पाएंगे।
संस्कृत या हिंदी के क्रांति शब्द में ओज के बजाय माधुर्य भाव निहित है ! जबकि उर्दू के इंक्लाब शब्द में एक खास जोशीले अंदाज का द्वंदात्मक भाव संचरित होता है!

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