पूंजीवादी सरकार और पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ जुलूस,हड़ताल और नारेबाजी करने से अव्वल तो कुछ होने वाला नही क्योंकि मीडिया पूरी तरह पूंजीपतियों के कदमों में औंधा पड़ा है!किंतु इन संघर्षों से यदि कभी कहीं कोई सत्ता परिवर्तन या कोई अस्थाई क्रांति हो भी जाये,तो भी सामाजिक आर्थिक असमानता का मिट पाना असंभव है!जब तक भारत में जाति और वर्ण है,और जातिपर आधारित आरक्षण की बैसाखी है, तब तक मेहनतकशों के बीच व्यापक एकता असंभव है!और तब तक किसी भी तरह की सर्वहारा क्रांति तथा सामाजिक समरसता भी असंभव है!इस समय इस विषयमें किसी भी राजनैतिक दल के पास सर्वसमावेशी सिद्धांत,विचार और कार्यनीतिक लाइन नहीं है!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें