प्रायः यह समझा जाता है कि मजदूर या सर्वहारा वर्ग के संघर्षों का लाभ मात्र उसे ही मिलता है किन्तु सच यह है कि उसका लाभ सभी शोषित पीड़ित लोगों और सारे राष्ट्र को मिलता है।
पूंजीपति वर्ग राष्ट्रवाद और राष्ट्र भक्ति की बातें बहुत करता है किन्तु स्वयं उसका चरित्र अंतरराष्ट्रीय होता है।
जब कभी भी किसी राष्ट्र का सर्वहारा अपना संघर्ष तेज करता है तब दुनिया के दूसरे राष्ट्रों के पूंजीपति चिंतित हो जाते हैं और इस विशेष राष्ट्र के पूंजीपति वर्ग कि सहायता के लिए खड़े हो जाते हैं।
चूंकि पूंजीपति वर्ग का चरित्र अंतरराष्ट्रीय होता है इसलिए उससे अच्छी तरह जुड़े होने के कारण सर्वहारा वर्ग का भी चरित्र अंतरराष्ट्रीय होता है।
पूंजीपति वर्ग और सर्वहारा वर्ग के अंतरराष्ट्रीय चरित्र में एक बड़ा अंतर यह होता है कि जहां पूंजीपति वर्ग अपने मुनाफे के लिए आपस में गलाकाट प्रतियोगिता करता है और युद्धों से लाभ दिखाई पड़े तो उसके लिए सदा तैयार रहता है।
किन्तु सर्वहारा वर्ग यह अच्छी तरह जानता है कि युद्धों में जन धन की जो हानि होती है वह मुख्यत: साधारण जनता की होती है इसलिए वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामान्यतया युद्धों का विरोध करता है।
सर्वहारा यह भी जानता है कि चाहे उसका स्वयं का राष्ट्र हो या उससे युद्ध कर रहा दूसरा राष्ट्र हो दोनों की साधारण जनता शोषित और पीड़ित होती है और युद्ध का सारा भुगतान उस साधारण जनता को ही करना पड़ता है न कि उसके शासक शोषक वर्ग को !
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