अठारहवी सदी के महान फ्रांसीसी चिंतक रूसो ने मानव समाज के इतिहास में पहली बार मनुष्य के जिन तीन प्राकृतिक अधिकारों की बड़े ही स्पष्ट शब्दों में चर्चा की वह हैं,,स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व के प्राकृतिक अधिकार।
1789 की महान फ्रांसीसी क्रांति को सामंतवाद पर पूंजीवाद की निर्णायक विजय के रूप में देखा जाता है।उस क्रांति के क्रांतिकारियों ने रूसो द्वारा बताए गए प्राकृतिक अधिकारों अर्थात स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को अपना नारा बना लिया था।
उस क्रांति कि विजय के बाद से फ्रांस ही नहीं दुनिया भर के अधिकांश देशों में जो संविधान बनाए गए उनमें किसी न किसी रूप में इन तीनों अधिकारों का उल्लेख होता आ रहा है।
विचारणीय बात यह है कि रूसो ने स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार क्यों स्थापित किया? रूसो ने मानव समाज के इतिहास के प्रारंभिक चरण अर्थात आदिम अवस्था ऐतिहासिक स्रोतों और अपनी कल्पना के द्वारा अपने आलेख में चित्रित किया। उसे उसने प्राकृतिक अवस्था का नाम दिया।प्राकृतिक अवस्था जंगली अवस्था थी।लोग जंगली थे,सभ्य नहीं थे।कपड़ा क्या होता है,वह नहीं जानते थे।किन्तु लोग बड़े नेक थे।भले मानुष थे।उस अवस्था में किसी व्यक्ति का नहीं ,बल्कि प्रकृति का कानून चलता था।उस अवस्था में सभी स्वतंत्र थे,सभी सामान थे और सबमें आपस में भाई चारा था अर्थात् बंधुत्व था।
इसीलिए रूसो ने स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार कहा।अर्थात ये वे अधिकार हैं जिन्हें मनुष्य से छीना नहीं जा सकता।
उन्नीसवीं सदी के सबसे बड़े चिंतकों मार्क्स और एंगेल्स ने इतिहास की भौतिक वादी व्याख्या की।इन्होंने अपनी व्याख्या में रूसो की अनेक बातों को सत्य पाया।इसके साथ ही इस बात को भी जोड़ा कि जब समाज शोषक और शोषित वर्गों में विभाजित हो गया तो मनुष्य की स्वतंत्रता और समानता की दो बातों का अंत हो गया।
इसके बावजूद शोषित वर्ग दास और किसान ,दस्तकार आदि ने अपने भाई चारे अर्थात बंधुत्व को कायम रखा।इतना ही नहीं सामंत वादी युग में सामंतों का किसानों ,दस्तकारों से व्यक्तिगत संबंध था और अपनी अनेक कमियों के बावजूद सामंत भी अपनी प्रजा के सुख दुख में शरीक होता था।वह भी भाई चारा रखता था।मुद्रा आधारित संबंध की निर्णायक स्थिति न होने के कारण जो पैदा होता था वह लोगों के काम आता था।सामंती क़ाल में पूंजीवाद के आगमन के कारण वह भाई चारा नष्ट होने लगा था।इसीलिए रूसो ने स्वतंत्रता और समानता के साथ ही बंधुत्व की भी रक्षा की गुहार लगाई।
पूंजीवाद ने सामंत वाद के विरुद्ध अपने संघर्ष में इन तीनों अधिकारों की रक्षा की बड़ी बड़ी बातें की किन्तु सत्तासीन होने के बाद उसकी बातें दिखावा भर ही रह गईं।इं अधिकारो में जिसको सबसे अधिक क्षति पहुंचाई गई वह ,,भाई चारे की,बंधुत्व की क्षति ,की ही बात है।
आज सारे संबंध,यहां तक कि बाप बेटे,पति पत्नी,रिश्तेदारों,गुरु शिष्य आदि के संबंध भी मुद्रा पर आधारित हो गए हैं।गोदाम अनाज से भरा हो,वह सड़ जाए तो सड़ जाए किन्तु उस भूखे को नहीं मिल सकता जिसके पाकेट में मुद्रा नहीं है। दवा एक्स्पायर भले ही हो जाए किन्तु वह मर रहे उस मरीज को नहीं मिल सकती जिसके पास मुद्रा नहीं है।
इस तरह पूंजीवाद और उसकी रक्षा में खड़ी सरकारों का आज तक उन्नीस बीस बच कर चले आए भाई चारे ,बंधुत्व पर संकट आन खड़ा है।
1789 की महान फ्रांसीसी क्रांति को सामंतवाद पर पूंजीवाद की निर्णायक विजय के रूप में देखा जाता है।उस क्रांति के क्रांतिकारियों ने रूसो द्वारा बताए गए प्राकृतिक अधिकारों अर्थात स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को अपना नारा बना लिया था।
उस क्रांति कि विजय के बाद से फ्रांस ही नहीं दुनिया भर के अधिकांश देशों में जो संविधान बनाए गए उनमें किसी न किसी रूप में इन तीनों अधिकारों का उल्लेख होता आ रहा है।
विचारणीय बात यह है कि रूसो ने स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार क्यों स्थापित किया? रूसो ने मानव समाज के इतिहास के प्रारंभिक चरण अर्थात आदिम अवस्था ऐतिहासिक स्रोतों और अपनी कल्पना के द्वारा अपने आलेख में चित्रित किया। उसे उसने प्राकृतिक अवस्था का नाम दिया।प्राकृतिक अवस्था जंगली अवस्था थी।लोग जंगली थे,सभ्य नहीं थे।कपड़ा क्या होता है,वह नहीं जानते थे।किन्तु लोग बड़े नेक थे।भले मानुष थे।उस अवस्था में किसी व्यक्ति का नहीं ,बल्कि प्रकृति का कानून चलता था।उस अवस्था में सभी स्वतंत्र थे,सभी सामान थे और सबमें आपस में भाई चारा था अर्थात् बंधुत्व था।
इसीलिए रूसो ने स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार कहा।अर्थात ये वे अधिकार हैं जिन्हें मनुष्य से छीना नहीं जा सकता।
उन्नीसवीं सदी के सबसे बड़े चिंतकों मार्क्स और एंगेल्स ने इतिहास की भौतिक वादी व्याख्या की।इन्होंने अपनी व्याख्या में रूसो की अनेक बातों को सत्य पाया।इसके साथ ही इस बात को भी जोड़ा कि जब समाज शोषक और शोषित वर्गों में विभाजित हो गया तो मनुष्य की स्वतंत्रता और समानता की दो बातों का अंत हो गया।
इसके बावजूद शोषित वर्ग दास और किसान ,दस्तकार आदि ने अपने भाई चारे अर्थात बंधुत्व को कायम रखा।इतना ही नहीं सामंत वादी युग में सामंतों का किसानों ,दस्तकारों से व्यक्तिगत संबंध था और अपनी अनेक कमियों के बावजूद सामंत भी अपनी प्रजा के सुख दुख में शरीक होता था।वह भी भाई चारा रखता था।मुद्रा आधारित संबंध की निर्णायक स्थिति न होने के कारण जो पैदा होता था वह लोगों के काम आता था।सामंती क़ाल में पूंजीवाद के आगमन के कारण वह भाई चारा नष्ट होने लगा था।इसीलिए रूसो ने स्वतंत्रता और समानता के साथ ही बंधुत्व की भी रक्षा की गुहार लगाई।
पूंजीवाद ने सामंत वाद के विरुद्ध अपने संघर्ष में इन तीनों अधिकारों की रक्षा की बड़ी बड़ी बातें की किन्तु सत्तासीन होने के बाद उसकी बातें दिखावा भर ही रह गईं।इं अधिकारो में जिसको सबसे अधिक क्षति पहुंचाई गई वह ,,भाई चारे की,बंधुत्व की क्षति ,की ही बात है।
आज सारे संबंध,यहां तक कि बाप बेटे,पति पत्नी,रिश्तेदारों,गुरु शिष्य आदि के संबंध भी मुद्रा पर आधारित हो गए हैं।गोदाम अनाज से भरा हो,वह सड़ जाए तो सड़ जाए किन्तु उस भूखे को नहीं मिल सकता जिसके पाकेट में मुद्रा नहीं है। दवा एक्स्पायर भले ही हो जाए किन्तु वह मर रहे उस मरीज को नहीं मिल सकती जिसके पास मुद्रा नहीं है।
इस तरह पूंजीवाद और उसकी रक्षा में खड़ी सरकारों का आज तक उन्नीस बीस बच कर चले आए भाई चारे ,बंधुत्व पर संकट आन खड़ा है।
भारत में बंधुत्व की जड़ें बड़ी गहरी हैं किन्तु देश की सत्ता पर बैठी पार्टी,भारतीय जनता पार्टी का मूलाधार ही बंधुत्व को छिन्न भिन्न करने का है।पहले धर्म के नाम पर यह काम कर रही थी और अब जाति को भी उसमे जोड़ रही है।
देश की जनता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह आपसी बंधुत्व को बचाने के काम में जुट जाए।
देश की जनता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह आपसी बंधुत्व को बचाने के काम में जुट जाए।
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