बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

'रहिमन हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार !'

संविधान ने सभी को समान अधिकार दिया है कि कोई क्या खाए ,क्या न खाए। और क्या पहिने ,क्या न पहिने। इस पर किसी अन्य को कोई एतराज नहीं होना चाहिए। विविधता और बहुलतावादी संस्कृति केवल आरक्षित या अल्पसंख्यक वर्गों के लिए ही नहीं है। बल्कि बहुसंख्यक वर्ग भी उतना ही बराबरी और सम्मान का हकदार है! यदि कोई स्वार्थी राजनेता बहुसंख्यक वर्ग पर झूंठा इल्जाम लगाये, अपमानित करे और चाहे कि वोट भी मिलें तो अब यह संभव नहीं!अपने आत्म सम्मान की रक्षार्थ बहुसंख्यक वर्ग को भी वोट की कीमत और उसके मार्फत अपना प्रतिवाद प्रस्तुत करने का हक है।देश का कोई भी नेता या पार्टी 'बहुसंख्यक' हिन्दू समाज की अवहेलना या अपमान नहीं कर सकता। वोट के लिए जो नेता और पार्टी हिंदुत्व का झंडा थामे हुए हैं,वे भी याद रखें कि अभी तक तो शिवसेना के लोग और तोगड़िया ही भाजपा वालों का चेहरा नोंच रहे हैं। किंतु आइन्दा यदि राजनीति की हांडीके लिए सिर्फ हिंदुत्व हिन्दू धर्म या गरीब सवर्ण समाजको विकास का ईधन बनाया गया तो वो चूल्हा ही बिखर जाएगा। वे यह भी याद रखें कि:-
'रहिमन हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार !'

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