धुल धुँआँ धुंध भरे व्योम में बारूदी गंध घुली ,
सोमकाज तीज त्यौहार ऐंसे कैसे मनपावै है!
रोजी के जुगाड़ की नित फ़िकर लागी जिनको,
बूझो उत्सव उमंग उन्हें क्या खाक हुलसावै है?
ख़ुशी मौज मस्ती चंद अमीरों की मुठ्ठी में बंद
जहां शरद चन्द्र अमृत और लक्ष्मी धन बरसावै है।
कहाँ पै जलाएं,दिये अकिंचन.अनिकेत अनगिन ,
जीवन ही जिनका घोर अमावश बन जावै है?
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