सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

जय जय अम्बे जय जगदम्बे।

महँगी बिजली महँगा पानी,
खाद बीज की खींचातानी
नहीं ठिकाना मानसून का,
भौंचक हैं सब ज्ञानी ध्यानी।।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों को,
नफरत की सुरसा भायी हैं!
गांव गली उर नगर नगर में,
साम्प्रदायिक कालिमा छाई है।।
मचा बबाल जाति आरक्षण का,
मची वोट की कारस्तानी !
त्यौहारों पर होती अक्सर ,
मजहब धर्म की खींचातानी !!
सत्ता बाबत शातिर नेता,
खुद ही कराते भीड़ से दंगे।
अमन शांति की ज्योति जले माँ
जय जय अम्बे जय जगदम्बे।।


नेता मंत्री अफसर बाबू ,
इन पर नहीं किसी का काबू!
भले बुढ़ापा आ जाए पर,
तृष्णा इनकी है बेकाबू!!
नित नित नए चुनावी फंडे,
बदल-बदल कर झंडे डंडे!
राजनीति इतनी हरजाई
कि नहीं देखती संडे मंडे!!
अंधे पीसें कुत्ते खायें यह,
रीति सदा से चली आ रही!
कोटि कोटि जनता पै भारी,
सत्ता की प्रभुता बढ़ी जा रही!!
भारत की धरती पर अम्बे ,
जाति धर्म के हाथ हैं लम्बे !
भ्रस्टन से आजाद करा मॉ,
जय जगदम्बे जय जय अम्बे!!
श्रीराम तिवारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें