मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

स्वस्थ आलोचना स्वाकार्य

कुछ सत्ता शुभचिंतकों और दकियानूसी अंध भक्तों को हमेशा शिकायत रहती है कि कुछ लेखक,कवि,और पत्रकार सत्ता प्रतिष्ठान के प्रतिकूल अप्रिय सवाल क्यों उठाते रहते हैं ? उन्हें तकलीफ है की ये पढ़े लिखे विवेकशील लोग भी अंधभक्तों की तरह 'भेड़िया धसान' होकर सत्ता समर्थक जयकारे में शामिल क्यों नहीं हो जाते ? एतद द्वारा उन अभागों को सूचित किया जाता है कि मौजूदा शासकों से इन चंद असहमतों की कोई व्यक्तिगत शत्रुता नहीं है। मोदीजी जब पहली बार संसद पहुंचे और सीढ़ियों पर मत्था टेका,तब वे हम सभी को अच्छे लगे!जब कभी उन्होंने समान और राष्ट्रीय विकास की बात की,शिक्षित युवाओं के भविष्य की बात की,विदेश में जाकर हिंदी का मान बढ़ाया तो हम खुश हुए! विगत वर्ष जब राजनाथसिंह के साथ नामवरसिंह जैसे वरिष्ठ साहित्यकारको प्रणाम करते दिखे तब भी मोदीजी हम सभी को प्रिय लगे ! लेकिन सवाल किसी वर्ग विशेष की अभिरुचि या विमर्श का नहीं है। सवाल समग्र राष्ट्र और समग्र समाज के सार्वजनिक हित का है !और इस कसौटी पर मोदी सरकार नितांत असफल होती जा रही है। इन हालात में भारत के प्रबुद्ध जन यदि मौजूदा शासन प्रशासन के कामकाज पर पैनी नजर रखते हैं,उसकी तथ्यपरक शल्य क्रिया करते हैं और वैकल्पिक राह सुझाते हैं तो उनको गंभीरता से लिया जाना चाहिए ! उनका सम्मान किया जाना चाहिए। बजाय इसके कि अंधभक्त लोग विपक्ष एवं आलोचकों से गाली गलौज करें !स्वस्थ आलोचना यदि स्वाकार्य है तो लोकतंत्र कायम रह सकेगा!

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