जिन्होंने मेरी जिंदगी में शामिल होकर इसे बेहतर बनाया उनका शुक्रिया! जिन्होने दूर होकर सिर्फ आलोचना की,उन्होंने इसे और भी बेहतर बनाया,उनका डबल शुक्रिया!
मंगलवार, 30 नवंबर 2021
सोमवार, 29 नवंबर 2021
"If you can't defeat, you join them"
अंग्रेजी में दो कहावतें ऐंसी हैं- जो हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री जी के बड़ी काम की हैं। बहुत संभव है कि वे उन्ही का अनुशरण करने जा रहे हों !
हाऊस वॉईफ की सैलरी*







रविवार, 28 नवंबर 2021
क्रांतिकारी विकल्प कोई नहीं!
सबको मालूम है कि जमाखोरी रिश्वतखोरी मिलावटखोरी,अवसरवाद और सांप्रदायिक कट्टरता की जकड़ में भारतीय लोकतांत्रिक सिस्टम अंदर से सड़ चुका है! किंतु किसान आंदोलन की तरह *व्यवस्था परिवर्तन* के लिये कोई कहीं कोई सुगबुगाहट भी नहीं है!
आध्यात्मिक और वैयक्तिक उद्धार
यदि आप पूर्वजों,वरिष्ठजनों ,सुह्रदयजनों सच्चे समाजसेवियों,मेहनतकशों,किसानों और अभिभावकों के प्रति कृतज्ञता भाव रखेंगे तो आप निश्चय ही सतत ऊर्जावान और सर्वप्रिय बने रहेंगे।
शनिवार, 27 नवंबर 2021
जो कौम या राष्ट्र इतिहास से सबक नहीं सीखते उनका वजूद हमेशा खतरे में रहता है !
जिस किसी प्रबुद्ध कौम या राष्ट्र ने 'व्यक्ति विशेष' की महत्ता के बजाय उसके द्वारा प्रणीत श्रेष्ठ 'मानवीय मूल्यों' को अर्थात ''विचारों' को महत्व दिया ,उस कौम या राष्ट्र ने अजेय शक्ति हासिल की। व्यक्ति की जगह मानवीय मूल्य , मानवोचित विचार और विवेक को महत्व देने के कारण ही अंग्रेज जाति ने सैकड़ों साल तक अधिकांस दुनिया पर राज किया है। जबकि अपने तानाशाह शासक नेपोलियन की जय- जयकार करने वाली फ़्रांसीसी जनता को एक अंग्रेज जनरल 'वेलिंग्टन' के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। इसी तरह हिटलर की जयजयकार करने वाले जर्मनों की नयी पीढी को उनके पूर्वजों का अंतिम हश्र ,आज भी शर्मिंदा करता है। जनरल तोजो की हठधर्मिता के कारण ही हिरोशिमा और नागाशाकी का भयानक नर संहार हुआ था, जिसका नकारात्मक असर आजभी जापानकी जनता पर देखा जा सकता है। जो कौम या राष्ट्र इतिहास से सबक नहीं सीखते उनका वजूद हमेशा खतरे में रहता है !
केरल पहला राज्य बना
मान्यवर कितने कालेधन वाले आपने अभी तक जेल भेजे हैं....
इनमें से अधिकांस लोग अपने पाप छिपाने के लिए सत्ताधारी पार्टी के साथ हो जाते हैं। इसलिए अब सत्ताधारी पार्टी का नैतिक और चारित्रिक पतन तेजी से होने लगता है,तो वे विपक्षी दलों पर सीबीआई, ED, आयकर के हमले तेज कर देते हैं, और अपोजीशन को हिंदू विरोधी सिद्ध करने में जुट जाते हैं !
जिन बुजर्ग माँ -बाप के जवांन लड़के सीमाओं पर आये दिन शहीद हो रहे हैं ,वे पूंछ रहे हैं कि जब आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल रही है तो पाकिस्तानी सेना और उसके पालतू आतंकियों के हाथों उनके नोनिहाल याने भारत के सैनिक लगातार शहीद क्यों हो रहे हैं ? यदि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल रही है तो उसकी डींगे क्यों हाँकी गयीं ? और उसके बाद सबूत क्यों मांगे गए ? यदि सबूत मांगे गए तो उन्हें उपलब्ध कराने के बजाय पीएम महोदय 'देशद्रोह' का जुमला लेकर देश की जनता पर 'नोटबंदी' लेकर क्यों टूट पडे ? इस 'नोटबंदी ' का सकारात्मक परिणाम यदि आवाम जानना चाहती है तो बताइये ना ! कि कितने कालेधन वाले आपने अभी तक जेल भेजे हैं ?दरसल एक भी नाम आपके पास नहीं है। जब आप ललित मोदी ,विजय माल्या और जनार्दन रेड्डी के आगे नतमस्तक हैं तो पाकिस्तान में छिपे आतंकियों,कश्मीरी पत्थरबाजों का के बिगाड़ लेंगे ?आप देश के अंदर के कालेधन वालों की एक आँख फोड़ने के चक्कर में भारत की तमाम मेहनतकश ईमानदार आवाम की दोनों आँखे फोड़ने पर आमादा क्यों हैं ?
शुक्रवार, 26 नवंबर 2021
सच्ची राष्ट्रनिष्ठा की कमी है
"भारत में न मंदिरों की कमी है,न मस्जिदों की कमी है! दर्सल यहाँ ऑक्सफोर्ड, हावर्ड JNU जैसे उत्क्रष्ट विश्वविद्यालयों और बेहतरीन अस्पतालों की कमी है!
हरिसिंह होने के मायने
15 फरवरी सन् 1945 की दोपहर सागर के कटरा बाजार में एक स्थूलकाय लालिमा लिए गोरे रंग का शख्स अपनी मोटरकार खड़ी करता है। जहां आज पटैरिया स्वीट्स की दूकान है,कार देखकर लोग थोड़ा चौंकते हैं और उसमें से उतर रहे शख्स को अचरज से देखने लगते हैं। अंग्रेजों की वेशभूषा में तकरीबन अंग्रेज साहब ही दीख पड़ रहा वह व्यक्ति कुछ कदम चल कर बकौली के पेड़ के नीचे खड़ा होता है और कौतुहल से देख रहे लोगों को हाथ के इशारे से अपने पास बुलाता है। कोई दो दर्जन लोग उसके नजदीक जाते हैं। देह में समाऐ उसके कंठ से एक भारी लरजदार आवाज निकलती है। "हम हरीसिंह गौर आएं।...बैरिस्टर। हम सागर के हैं। सागर में यूनीवर्सिटी खोल रहे हैं!" ...लोगों के पल्ले इतना पड़ा कि यह आदमी अनपेक्षित रूप से सगरयाऊ बुंदेली में बोल रहा है। वह फिर बोला और इसबार उसने अपनी फुलपेंट से शर्ट निकाल कर उसको झोली का आकार दिया और सबके सामने फैला दिया। "...सागर में विश्वविद्यालय खोल रय हैं,पैसा नईं चाने आप सबको सहयोग चाने हैं!" तब तक जमा हो चुके लोगों की तादाद कुछ और बढ़ गयी थी...सबने सुना और लोगों की समझ में जो आया वह सिर्फ इतना था कि कोई हरीसींग हैं, पैसा नहीं मांग रहे, सहयोग मांग रहे हैं और सागर के ही हैं लिहाजा भीड़ के अलग अलग कोनों से आवाज उठी... " हओ...हओ....हओ...!" लोगों ने पाया कि यह सुनकर उस शख्स की आंखों में चमक सी दौड़ी और दोनों हाथ उठा कर धन्यवाद देता वह पलट कर अपनी कार की ओर गया, बैठा और चला गया।
गुरुवार, 25 नवंबर 2021
भारत के गद्दारों का नाश हो!
पंडित नेहरु और इंदिराजी द्वारा स्थापित, जिन नवरत्नों ने 2007-2008 की भयानक वैश्विक आर्थिक मंदी में भी, भारत को फिसलने नहीं दिया,उन सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) को,घाटे में धकेलकर, निजी हाथों में सौंपने वाले (भ्रस्ट नेता अफसर)देश के गद्दार हैं! भारत के गद्दारों का नाश हो!
'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी. सो नृप अवश्य नर्क अधिकारी।
पूंजीवाद निष्ठुर,बेशर्म और मुनाफाखोर होता है! लोकतांत्रिक व्यवस्था में पूँजीपति वर्ग और संगठित लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं! किंतु असंगठित कामगारों,निजी क्षेत्र के मजदूर कर्मचारियों और बेरोजगार युवाओं को यह पूंजीवादी व्यवस्था,अपराध जगत या भुखमरी एवं अभावों की अंधेरी खाई में धकेलती रहती है! इस सिस्टम में जाति,मजहब/धर्म और राष्ट्रीय अलगाव का भय पैदा कर जन आंदोलन को बदनाम कर दिया जाता है!
१५ अगस्त -१९४७ को आजादी मिलने के उपरान्त भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ऐंसा अवसर आया जब एक साल तक लगातार कोई जन आंदोलन [ किसान आंदोलन २०२०-२०२१ ] अधिनायक वाद को लगातार बराबर की टककर देकर सुर्खुरू हुआ है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया सबसे विराट किसान आंदोलन सिर्फ किसान विरोधी तीन बिलों की वापिसी का आंदोलन रह गया ,अपितु वह दुनिया को बताने सफल रहा कि भारतीय स्वाधीनता के नायक आदरणीय महात्मा गाँधी का 'सत्याग्रह और अहिंसा' सिद्धांत सर्वकालिक और सर्वत्र कारगर है।
इस किसान आंदोलन ने न केवल कांग्रेस और वामपंथ को संजीवनी प्रदान की बल्कि यूपी बिहार के सपा बसपा और जदयू जैसे दलों के जातिवादी नेताओं के राजनैतिक पाखंड की कलई खोल दी. हालांकि टिकैत जैसे कुछ किसान नेता किसी खास राजनैतिक विचारधारा के तरफ़दार नहीं हैं ,किन्तु उन्होंने किसान आंदोलन को सही दिशा दी और वक्त पर किसानों की हौसला आफजाई भी की।
इस किसान आंदोलन की सफलता ने मेहनतकशों के बिभिन्न जन आंदोलनों को प्राणवायु प्रदान की है। दरसल वविगत ६-७ साल से देखने में आ रहा था कि अधिकांश मेहनतकश वर्ग के आंदोलनों को ,ट्रेड यूनियनों को जबरन कुचला गया। कृषि कानून तो सरासर गलत थे ही ,किन्तु इस दौरान सत्ता का चरित्र बेहद फासीवादी और पूँजीवाद परस्त देखा गया। शांतिपूर्ण आंदोलन करते हुए जिस देश के ७०० किसान शहीद हो जाएँ और उस देश का प्रधानमंत्री खुद ही प्रेस और मीडिया को ब्रीफिंग दे कि " ये आन्दोलनजीवी तो परजीवी की तरह होते हैं '' ऐंसा आपत्तिजनक बयान देने से पहले उन्हें नहीं भूलना चाहिए था कि 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी. सो नृप अवश्य नर्क अधिकारी।
इस किसान आंदोलन की सफलता ने सबसे बड़ा काम यह किया कि प्रचंड जनादेश की सरकार को भी बाध्य कर दिया कि वह देश की आवाम को मूर्ख न समझे। भारत की आवाम ने खास तौर से आंदोलनकारी संघर्षशील किसानों ने बड़ी शिद्द्त से स्वर्गीय राम मनोहर लोहिया जी के कथन को सही साबित कर दिया कि "जिन्दा कौमें ५ साल तक इन्तजार नहीं करतीं" मतलब आगामी २०२४ तक इन्तजार नहीं करते हुए भारत के संगठित किसान आंदोलन ने सैकड़ों कुर्बानियां देकर इस मौजूदा निजाम को मजबूर कर दिया कि जन विरोधी क़ानून बनाकर जनता पर न थोपें। ...
बुधवार, 24 नवंबर 2021
पूँजीवाद का राज
जब तक अंबानी-अडानी के मित्रों का राज रहेगा!
जिंदगी बहुत कम है प्यार से जियो दोस्तो।
प्रत्येक लाइन गहराई से पढ़े।












मंगलवार, 23 नवंबर 2021
राष्ट्र राज्य को इनसे भी खतरा ....
भारत में आजादी के दौरान और उसके कुछ समय बाद तक यहां साधू संत महंत मुल्ले मौलवी स्वाधीनता परस्त देशभक्ति