रविवार, 21 नवंबर 2021

जा पर बीती होय !

  अंदर दाव* लागी  रहे,धुँआँ  न प्रगट होय !

कै जिय जाने आपनों, कै जा पर बीती होय !!

अर्थ :- रहीम कवि कहते हैं कि जब किसी  सम्मानित व्यक्ति की नादानी से जग हँसाई होती है.तो उसके ह्रदय में जो  दावानल  [ बिना धुआँ की आग-कुम्हार के अबा की तरह ] धधकती है,उसकी आँच केवल वही जानता है  या जिस किसी पर इसी तरह की गुजरी हो ! [नोट ;- इस दोहे का मोदी  सरकार या भाजपा समर्थकों का  कोई वास्ता नहीं ]


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