अंदर दाव* लागी रहे,धुँआँ न प्रगट होय !
कै जिय जाने आपनों, कै जा पर बीती होय !!
अर्थ :- रहीम कवि कहते हैं कि जब किसी सम्मानित व्यक्ति की नादानी से जग हँसाई होती है.तो उसके ह्रदय में जो दावानल [ बिना धुआँ की आग-कुम्हार के अबा की तरह ] धधकती है,उसकी आँच केवल वही जानता है या जिस किसी पर इसी तरह की गुजरी हो ! [नोट ;- इस दोहे का मोदी सरकार या भाजपा समर्थकों का कोई वास्ता नहीं ]
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