भारत में आजादी के दौरान और उसके कुछ समय बाद तक यहां साधू संत महंत मुल्ले मौलवी स्वाधीनता परस्त देशभक्ति
और नैतिकता से सराबोर रहे!
मुग़ल काल में कई सन्यासी विद्रोह पढ़ने -सुनने में आये हैं। इस देश में सन्यास और महात्माओं का अक्सर बड़ी बड़ी कुर्बानियां देकर राजनैतिक मूल्यों को स्थापित करने में सभी धर्मों के संतों,कवियों और महात्माओं का बड़ा योगदान रहा है।
किन्तु आजादी के बाद देश में इस क्षेत्र में गिरावट और चरम पतन का सिलसिला थम नहीं रहा है। इस दुखद और शर्मनाक स्थिति के लिए शायद लोकतान्त्रिक सुविधा का बेजा दुरूपयोग ही जिम्मेदार है। राजनीतिक गिरावट,साहित्यिक बदचलनी और पूँजीवादी व्यवस्था भी इस अंधश्रद्धा के लिए कुछ कम जिम्मेदार नहीं है। यह कटु सत्य है कि सभी धर्मों,सम्प्रदायों और पंथों में पापाचार की भयानक प्रतिद्व्न्दिता तो है ही इसके साथ ही इन सभी के असंवैधानिक कृत्यों से राष्ट्र राज्य को भी सदा खतरा हुआ करता है।
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