है विकास की लालसा, नव उत्साहीलाल।
पूँजी मिले विदेश से,किसी तरह तत्काल ।।
कोटि जतन मिन्नत करी, मन में नहीं मलाल!
सत्ता की बिल्ली हुई, पूँजी हाथ हलाल!!
धनपशुओं को लूट की,नेता बना रहे नीति।
ऋण लेकर घी पी चलो,चार्वाक की रीत ।।
निजी क्षेत्र के कर कमल, राष्ट्र रत्न नीलाम
ओने-पौने बिक गए , बीमा टेलिकाम!!
जब तक रहे विपक्ष में,रहा स्वदेशी याद।
आज विदेशी का वही,करते जिंदाबाद।।
श्रीराम तिवारी
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