*दोनों के अंतर को समझें*
*और जीवन का आनंद लें...*
*इंसान को उम्र बढ़ने पर...*“
*"बूढ़ा”नहीं बल्कि .... **
*“वरिष्ठ” बनना चाहिए...*
*“ बुढ़ापा ”...अन्य लोगों का आधार ढूँढता है,*
*“ वरिष्ठता ”... लोगों को आधार देती है...*
*“बुढ़ापा"... छुपाने का मन करता है,ू*
*“वरिष्ठता”...उजागर करने का मन करता है...*
*“ बुढ़ापा ”...अहंकारी होता है,*
*“वरिष्ठता”...अनुभव संपन्न, विनम्र व संयमशील होती है...*
*“बुढ़ापा”...नईपीढ़ी के विचारों से छेड़छाड़ करता है,*
*“वरिष्ठता”...युवापीढ़ी को बदलते समय के अनुसार, जीने की छूट देती है...*
*“बुढ़ापा”... "हमारे ज़माने में ऐसा था" की रट लगाता है,*
*“वरिष्ठता”... बदलते समय से अपना नाता जोड़ती है और उसे अपना लेती है...*
*“बुढ़ापा”... नई पीढ़ी पर अपनी राय थोपता है,*
*“वरिष्ठता”... तरुणपीढ़ी की राय समझने का प्रयास करती है...*
*“बुढ़ापा"... जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है,*
*“वरिष्ठता”... जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है,*
*तथा युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है•••••••*
*“वरिष्ठता” और “बुढ़ापे”के बीच के अंतर को.... गम्भीरतापूर्वक समझकर,*
*जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनिए।*
*उम्र कोई भी हो....*
*सदैव फूल की तरह खिले रहिए,....*
*उमंग उत्साह में रहिएएक ...*
*दूसरों के जीवन के लिए प्रेरणा बनें....*
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