कुछ साथी कह रहे हैं कि जब किसान आंदोलन सफल रहा,तो BSNL,एयर इंडिया, और तमाम सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी /अधिकारी सफल क्यों नहीं हो सकते?
दरसल किसान आंदोलन से घाटे में चल रहे BSNLजैसे सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारी/ कर्मचारियों के संघर्षों की तुलना नहीं की जा सकती! क्योंकि किसान आंदोलन सिर्फ एक सूत्री मांग पर अड़ा था -किसान विरोधी कानून वापिस लो! यह आंदोलन सिर्फ एक साल चला!जबकि BSNL और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी/ अधिकारी सरकारी उपकर्मों की जीवंतता के लिये विगत 20 साल से ही लगातार संघर्ष कर रहे हैं! वेतन वार्ता के लिए 1-1-2017 से संघर्ष कर रहे हैं! किसान विरोधी कानून वापिस लेने से केंद्र सरकार को सिर्फ अपनी जिद छोड़नी पड़ी! कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ नही उठाना पड़ेगा! केवल कॉर्पोरेट इंटरेस्ट ही मनमाफिक पूरे नही होंगे! इस तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि इतिहास का महानतम् किसान आंदोलन सफल रहा!
लेकिन लगभग ढाई लाख BSNL/MTNL Pensioners और करीब एक लाख कांट्रेक्ट वर्कर्स सहित दो लाख रेर्ग्युलर कर्मचारियों /अॉधिकारियों को 1-1-2017 से वास्तविक बढ़े हुए वेतन और बढ़ी हुई पेंशन देने पर केंद्र सरकार को पसीना आ रहा है, क्योंकि अरबों रुपया का अतिरिक्त बजट जुटाना आसान नहीं है!
BSNL को विभिन्न मद में (DOT) याने केंद्र सरकार से लगभग 39000 करोड़ रुपये लेना है! सरकार यदि BSNL का पैसा लौटा दे, तो न केवल घाटा पूर्ति होगी, बल्कि 4G और नये इक्युपमेंट संधारण के काम तेजी से होंगे और कर्मचारियों के वेतन भत्ते समय पर भुगतान होने में देरी भी नही होगी! किंतु सरकार की मंशा है कि घाटे में जबरन धकेले गये BSNL का पैसा लौटाकर उसे संजीवनी बूटी न दी जाए! ताकि आसानी से BSNL की Asets को अपने मित्रों ( अंबानी अडानी) के बीच बांटा जा सके!
और इधर घाटे के बहाने BSNL और DOT का अधिकारविहीन मेनैजमेंट संघर्षरत संयुक्त यूनियन मंच (AUAB) के बीच चल रही 0% Fitment फॉरमूले के आधार पर बातचीत से कर्मचारियों /अधिकारियों के आक्रोश को डायल्यूट किया जा सके!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें