पूंजीवाद निष्ठुर,बेशर्म और मुनाफाखोर होता है! लोकतांत्रिक व्यवस्था में पूँजीपति वर्ग और संगठित लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं! किंतु असंगठित कामगारों,निजी क्षेत्र के मजदूर कर्मचारियों और बेरोजगार युवाओं को यह पूंजीवादी व्यवस्था,अपराध जगत या भुखमरी एवं अभावों की अंधेरी खाई में धकेलती रहती है! इस सिस्टम में जाति,मजहब/धर्म और राष्ट्रीय अलगाव का भय पैदा कर जन आंदोलन को बदनाम कर दिया जाता है!
१५ अगस्त -१९४७ को आजादी मिलने के उपरान्त भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ऐंसा अवसर आया जब एक साल तक लगातार कोई जन आंदोलन [ किसान आंदोलन २०२०-२०२१ ] अधिनायक वाद को लगातार बराबर की टककर देकर सुर्खुरू हुआ है। भारत ही नहीं बल्कि दुनिया सबसे विराट किसान आंदोलन सिर्फ किसान विरोधी तीन बिलों की वापिसी का आंदोलन रह गया ,अपितु वह दुनिया को बताने सफल रहा कि भारतीय स्वाधीनता के नायक आदरणीय महात्मा गाँधी का 'सत्याग्रह और अहिंसा' सिद्धांत सर्वकालिक और सर्वत्र कारगर है।
इस किसान आंदोलन ने न केवल कांग्रेस और वामपंथ को संजीवनी प्रदान की बल्कि यूपी बिहार के सपा बसपा और जदयू जैसे दलों के जातिवादी नेताओं के राजनैतिक पाखंड की कलई खोल दी. हालांकि टिकैत जैसे कुछ किसान नेता किसी खास राजनैतिक विचारधारा के तरफ़दार नहीं हैं ,किन्तु उन्होंने किसान आंदोलन को सही दिशा दी और वक्त पर किसानों की हौसला आफजाई भी की।
इस किसान आंदोलन की सफलता ने मेहनतकशों के बिभिन्न जन आंदोलनों को प्राणवायु प्रदान की है। दरसल वविगत ६-७ साल से देखने में आ रहा था कि अधिकांश मेहनतकश वर्ग के आंदोलनों को ,ट्रेड यूनियनों को जबरन कुचला गया। कृषि कानून तो सरासर गलत थे ही ,किन्तु इस दौरान सत्ता का चरित्र बेहद फासीवादी और पूँजीवाद परस्त देखा गया। शांतिपूर्ण आंदोलन करते हुए जिस देश के ७०० किसान शहीद हो जाएँ और उस देश का प्रधानमंत्री खुद ही प्रेस और मीडिया को ब्रीफिंग दे कि " ये आन्दोलनजीवी तो परजीवी की तरह होते हैं '' ऐंसा आपत्तिजनक बयान देने से पहले उन्हें नहीं भूलना चाहिए था कि 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी. सो नृप अवश्य नर्क अधिकारी।
इस किसान आंदोलन की सफलता ने सबसे बड़ा काम यह किया कि प्रचंड जनादेश की सरकार को भी बाध्य कर दिया कि वह देश की आवाम को मूर्ख न समझे। भारत की आवाम ने खास तौर से आंदोलनकारी संघर्षशील किसानों ने बड़ी शिद्द्त से स्वर्गीय राम मनोहर लोहिया जी के कथन को सही साबित कर दिया कि "जिन्दा कौमें ५ साल तक इन्तजार नहीं करतीं" मतलब आगामी २०२४ तक इन्तजार नहीं करते हुए भारत के संगठित किसान आंदोलन ने सैकड़ों कुर्बानियां देकर इस मौजूदा निजाम को मजबूर कर दिया कि जन विरोधी क़ानून बनाकर जनता पर न थोपें। ...
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