ऊषा की लालिमा घुली ,
भोर का शुभम हो गया !
भोर का शुभम हो गया !
जिंदगी की राह में तभी,
खुदसे मिलन हो गया !!
खुदसे मिलन हो गया !!
दिव्यता अलौकिक सजी,
अंजुरी में पुष्प थे खिले।
अंजुरी में पुष्प थे खिले।
देह यह धरा बन गई ,
विचार जब गगन हो गया ।।
विचार जब गगन हो गया ।।
शब्द ओस बिंदु बन गए,
छंद नव गीत बन गए ।
छंद नव गीत बन गए ।
जिजीविषा धन्य हो गई ,
मन नवनीत हो गया।।
मन नवनीत हो गया।।
संघर्ष पूर्ण मन्त्र सध गए ,
कर्म शंखनाद हो गए ।
कर्म शंखनाद हो गए ।
संघर्षों की यज्ञवेदी पर ,
स्वार्थ का हवन हो गया।।
स्वार्थ का हवन हो गया।।
अहम का वहम मिट चला,
अस्तित्व जब वयम हो गया ।
अस्तित्व जब वयम हो गया ।
जीवन संग्राम में मेरा ,
सत्य से मिलन हो गया।।
सत्य से मिलन हो गया।।
जिंदगी की राह में तभी ,
खुद से मिलन हो गया।,,,,,,,,,,,,!
खुद से मिलन हो गया।,,,,,,,,,,,,!
श्रीराम तिवारी
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