हरी-भरी धरा हो गई ,जनगण मगन हो गया।
मुक्ति के संग्राम का लहू ,फिर से जवां हो गया।!
संघर्ष द्वन्द ग्रन्थ के सभी,सर्ग इस मुल्क ने पढ़े।
देश का विधान बन गया,लोकतंत्र धन्य हो गया।।
शत्रू कुचालों से वतन,घायल भी कम न हुआ !
धर्म जाति फितरत का,मर्ज वेरहम हो गया।।
धांधली व्यवस्था की,मुल्क अभिशाप बन गई ।
जाति -पाँति -मजहब का,चुनाव में चलन हो गया।!
खम्बे चारों लोकतंत्र के,बीमार हम खुद कर चले,
वित्तीय गुलामी से,राष्ट्र रत्न नीलाम हो गया !
शोषण के व्योम में हम ,प्रश्न बन कर घूमते रहे,
क्रान्ति कुछ अधूरी थी,संघर्ष भी कुंद हो गया।।
मँहगाई की सुरसा से,ये मुल्क हैरान हो रहा,
भृष्टाचार -रिश्वत का,व्यभिचार आम हो गया।।
शहीदों के सपनों का ,वेदना से मिलन हो गया।
श्रीराम तिवारी-:
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