सोमवार, 27 अगस्त 2018

गुल अपने ही खिलाये हुए हैं।

हंस लम्बी उड़ानों के हैं हम,
क्रांति पथको सजा्ये हुए हैं।
छोड़ यादों का वो कारवां,
आज ही होश आये हुए हैं ।।
साथी मिलते गये नए नए ,
कुछ अपने भी पराये हुए हैं ।
फलसफा पेश है पुर नज़र ,
लक्ष्य उसपै ही टिकाये हुए हैं ।।
अम्न का अंश है जिस फिजामें,
मेघ उस नभ में छाये हुए हैं।
युग युग से जो प्यासे रहे हैं,
वे अब क्षीरसिंधु नहाये हुए हैं।।
अपनी चाहत के रंग सब बदरंग,
खुद अपने ही सजाये हुए हैं।
औरों की खता कुछ नहीं है,
गुल अपने ही खिलाये हुए हैं।।
चंद दिनके लिये धतकरम सब,
क़र्ज़ खुद कितना चढ़ाए हुए हैं।
जख्म जितने भी हैं जिंदगी के,
आप अपने कमाए हुए हैं।।
खुद ही भूले हैं अपने ठिकाने,
दोष जग पै लगाये हुए हैं।
वक्त ने ही मिटाया है सबको,
जो वक्त के ही बनाये हुए हैं।।
श्रीराम तिवारी

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