सोमवार, 27 अगस्त 2018

संत साहित्य बनाम सत साहित्य !

पुरातन भारतीय अध्यात्म-दर्शन साहित्य को,धर्मशास्त्रों को अंध-आस्था के हवाले नहीं किया जा सकता।भले ही ये रूप और आकार में भूसे के ढेर ही क्यों न हों,किंतु आधुनिक वैज्ञानिक जनवादी साहित्य की तरह इस प्राचीन अमर साहित्य में भी प्राणी मात्र के हितैषी एवं जगत हितकारी अनेक अनमोल मणि माणिक्य छिपे हुये हैं!वेद, उपनिषद,गीता,समयसार,सांख्यशास्त्र के अलावा,बुद्ध,महावीर,नानक, कबीर और गोस्वामी तुलसीदास का प्रत्येक शब्द प्राणी मात्र के लिये हीहै!इनको और यूनानी दर्शन को पढ़े बिना,कोई भाववादी दर्शन को नही समझा जा सकता!और भाववाद को जाने विना मार्क्स एंगेल्सके द्वंदात्मक भौतिकवाद को समझना वैसे ही है,जैसे बिना मरे स्वर्ग जाना! संत साहित्य बनाम सत साहित्य और मार्क्सवाद भी सत साहित्य से प्रेरित है. 

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