चुनाव के दौरान उन मतदाताओं की बड़ी फजीहत हुआ करती है,जो भाजपा और कांग्रेस की नीतियों से सहमत नही हैं!और जिनके सामने-भाजपा,कांग्रेस या कोई अन्य दल का उम्मीदवार तो है,किंतु वर्ग चेतना से लैस वामपंथी उम्मीदवार नही है!इन हालात में मतदाता यदि परिपक्व है तो वह कांग्रेस को चुनेगा !क्योंकि कांग्रेस की आर्थिक नीति काविरोध करते हुये भी अपने वर्गीय हितों के लिये संघर्ष किया जा सकता है,किंतु भाजपा या संघ के सत्ता में रहते हुये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-लोकतंत्र अक्षुण नही रह सकते! यद्दपि कांग्रेस और भाजपा का वर्ग चरित्र एक जैसा ही है,किंतु संसदीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के बरक्स दोनों में बहुत फर्क है!वैसे तो अक्सर कांग्रेस और भाजपा को एक ही पायदान पर खड़ा किया जाता रहा है। किन्तु बजाय भाजपा के सर्वसत्तावाद और आक्रामक पूँजीवाद के कांग्रेस का उदारवादी जनवाद और लोकतांत्रिक चेहरा स्वीकार्य किया जाना चाहिये !कांग्रेस में राहुल गांधी हों या कोई और नेतागण हों उन्हें कांग्रेस के वेशिक सिद्धांतों के अलावा अपनी विनाशकारी आर्थिक नीतियों- मनमोहनी अर्थशाश्त्र की खामियों की भी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें बहुत सोच समझकर संयम के साथआगामी संसदीय चुनावोंसे पूर्व न केवल जनवादी आर्थिक नीति का खुलासा करना चाहिये बल्कि ठोस'कामन मिनिमम प्रोग्राम', धर्मान्धता,साम्प्रदायिक दंगे,कुशासन,भीड़- हिंसा,महँगाई,बेकारी,निजीकरण ठेकाकरण और माफिया राजके खिलाफ अपनी ओरसे कठोर कार्यवाहीकाअनुमोदन करना चाहिये!कांग्रेसको या उसके नेतत्व को हताश निराश होने की जरुरत नहीं है। उन्हें अपनी पार्टी से वंशवाद और चमचावाद को खत्म करने की ओर भी कुछ तो कदम आगे बढ़ाने चाहिए। कांग्रेसियों को थोड़ा सा सांगठनिक संयम, सब्र और थोड़ा सी नीतिगत आत्मालोचना भी करनी चाहिये!यदि इतनाही कर लियातो बाकी का काम जनता कर देगी !क्योंकि किसीभी सत्तारूढ़ सरकार से नाराज जनता उसे अपदस्थ करने के लिये हमेशा तैयार रहती है !शर्त सिर्फ यह है कि मतदाता के समक्ष विश्वसनीय विकल्प हो!श्रीराम तिवारी
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