गुरुवार, 16 अगस्त 2018

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत"...


श्रमजीवी,परजीवी,अमीर,गरीब,स्वामी,दास,सामंत,किसान,दस्तकार इत्यादि परस्पर विरोधी आर्थिक और सामाजिक जन समूहों और उनके बीच के झगड़ो,संघर्षों की बातें सारी दुनिया में ,सदियों से होती आ रही हैं।
किन्तु श्रम विभाजन को लेकर किसी भी संत,महात्मा,दार्शनिक,कवि,अर्थशास्त्री ने उसे स्वाभाविक और जायज नहीं ठहराया।
कमेरे और लुटेरे के बीच के द्वंदात्मक संघर्ष को समाप्त करने के उपदेश,उपाय जरूर बताए।
किसी ने कभी उनके अलग अलग होने को भगवान की इच्छा या किसी ने पूर्वजन्मों का फल कहा है!
दुनिया के लगभग सभी आदर्शवादियों ने धर्मगुरुओं ने मेहनतकशों को संतोष करने, धीरज रखने,स्वामिभक्त होने,आज्ञा पालन करते रहने का, अमानवीय और अन्याय पूर्ण दंड को न्याय पूर्ण मान लेने की शिक्षा दी।कुछ नेक लोगो ने शासक स्वामियों को दयालु,उदार,प्रजापालक होने की बात भी कही।
मानव समाज के इतिहास में यह पहली बार हुआ की मार्क्स और एंगेल्स ने कमेरों-मजूरों के ,सर्वहारा के संघर्ष का मात्र समर्थन ही नहीं किया!बल्कि उन्होंने उसे और अधिक तेज करने की सलाह भी दी!उसे जायज ठहराया,औचित्य प्रदान किया और इतना ही नहीं उसे अपना नेतृत्व भी प्रदान किया।उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उस संघर्ष के लिए अर्पित कर दिया।

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