भारत में प्रायः देखा गया है कि धर्मांध लोगों को अपने शास्त्रीय धर्मसूत्रों या आप्तबचनों में कोई दिलचस्पी नहीं है। केवल सैर सपाटे के लिये अनंतनाग ,वैष्णव देवी या हज यात्रा पर निकल पड़ते हैं! इन दिनों कांवड़ यात्रा कुछ ज्यादा हाईटैक हो गई है ! 'बमबमबोल' वाले नारों के साथ अब 'बम' भी फूटने लगे हैं! जो लोग सत्य,अहिंसा,अस्तेय,ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ,शौच,संतोष ,स्वाध्याय व ईश्वर प्राणिधान द्वा इत्यादि के बारे में कुछ नही जानते!वे व्यर्थ बातें बहुत करते हैं। किन्तु अन्याय,अत्याचार करने वालों से किसीभी किस्म का जायज संघर्ष करने के बजाय वे उनके ही शिकार हो जाया करते हैं। आम तौर पर अमीर-गरीब ,शरीफ-बदमाश सभी किस्म के धर्मांध हिन्दुओं मुस्लिमोंको अपने पाखंडी 'बाबाओं'मुल्ले मौलवियों पर अटूट अंध श्रद्धा हुआ करती है। साम्प्रदायिक और जातीय आधार पर वोट जुगाड़ने वाले दलों को ये अंधश्रद्धा के नशे में डूबी नस्ल केवल 'चुनाव जिताऊभीड़' मात्र हैं !इसीलिए वे बाबाओं-कठमुल्लों के पाखंड- व्यभिचार पर चुप्पी साधे रहते हैं। इस तरहकी मानसिकता सिर्फ-हिंदुओं में ही नहीं,बल्कि अल्पसंख्यक वर्ग में भी पाई जाती है
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