धार्मिक व्यथा एक साथ वास्तविक दुखों की अभिव्यक्ति और उनका प्रतिवाद दोनों है!धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह है!धर्म आत्मा- हीन परिस्थितियों कीआत्मा है!धर्म ह्रद़यहीन विश्व का ह्रदय है!निर्दयी संसार का मर्म है तथा साथ ही निरुत्साही परिस्थितियों का उत्साह और उमंग भी है!धर्म एक अफीम है!
-कार्ल मार्क्स
-कार्ल मार्क्स
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