बुधवार, 29 अगस्त 2018

तुलसीदास को मैंने जैसा पाया


हमारे समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आए दिन बेसुध अवस्था अंटशंट बकते हैं,फेसबुक पर तो मोदीभक्तों ने अंटशंट बकने में स्वर्णपदक प्राप्त किया है। इनमें अनेक तुलसी के ढोंगीभक्त भी हैं। तुलसी के ढोंगीभक्त वे हैं जो तुलसी का नाम लेते हैं लेकिन आचरण उनके विचारों के विरुद्ध करते हैं। इनमें सबसे खराब आचरण वह है जिसे बेसुध अवस्था में अंटशंट कहने या लंबी हाँकना कहते हैं। ये वे लोग हैं जिनका ज्ञानक्षेत्र बंद है। तुलसी को सचेत कवि और सचेत पाठक पसंद हैं,उनको ऐसे भक्त पसंद हैं जिनके ज्ञान नेत्र खुल चुके हैं।
उन्होंने लिखा है-
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना।
ग्यान नयन निरखत मन माना।।
रामचरित मानस कालजयी रचना है आप इसकी जितनी आलोचना करें,इससे उसका दर्जा घटने वाला नहीं है। कालजयी रचनाएं राष्ट्र की लाइफ लाइन से जुड़ी होती हैं ।
भारत में विगत 65सालों में किसी भी जाति के लेखक को महान रचना करने से नहीं रोका गया,लेकिन रामचरित मानस जैसी लोकप्रिय एक भी कृति आधुनिक भारत के लेखक क्यों नहीं रच पाए ,किसने रोका है तुलसी से महान रचना लिखने से ? आधुनिक काल में लेखक के पास जितनी सुविधाएं हैं,वैसी तुलसी युग में नहीं थी ं।
रामचरित मानस धार्मिक ग्रंथ नहीं है और नहीं यह जाति विशेष के लिए लिखा गया ग्रंथ है, यह महाकाव्य है और हमें महाकाव्य को पढ़ने-पढ़ाने का शास्त्र या आलोचना विकसित करनी चाहिए। हमारे बहुत सारे मित्र तुलसी को दलित या स्त्री के नजरिए से देखकर तरह -तरह के जाति और लिंगगत विद्वेष के रुपों को खोज लाते हैं।ये सभी लोग महाकाव्य को देखने की साहित्यचेतना अभी तक विकसित नहीं कर पाए हैं। महाकाव्य कभी कॉमनसेंस चेतना से समझ में नहीं आ सकता। महाकाव्य ,साहित्य की श्रेष्ठतम चेतना है। उसके लिए विकसित साहित्यबोध का होना जरुरी है।
तुलसी युग में दलित कवि सबसे लोकप्रिय कवियों थे, वे आज भी जनप्रिय हैं, सवाल यह है मध्यकालीन दलित कवियों की तरह आज के दलित लेखक आम जनता में व्यापक स्तर पर लोकप्रिय क्यों नहीं हैं ?जबकि मध्यकालीन दलित कवियों से उनकी स्थिति बेहतर है।
तुलसी का औरतों के प्रति आधुनिक नजरिया था। तुलसी की स्त्रियाँ किसी का आशीर्वाद नहीं चाहतीं, बल्कि आशीर्वाद देती हैं। लोग राम के पैरों पड़ते हैं,उनसे भक्ति का वरदान माँगते हैं,तुलसी के यहाँ स्त्रियाँ सीता के पैर तो पड़ती हैं लेकिन उल्टा उनको आशीष देती हैं।लिखा है-
अति सप्रेम सिय पायँ परि,बहुत विधि देहिं असीस।
सदा सोहागिनि होहु तुम,जब लगि महि अहि सीस।।
लोक कविता की विशेषता है कि उसमें अतिशयोक्ति का खूब प्रयोग होता है।इसी तरह पढ़ना कला है ,उसके अनेक नए-पुराने नियम हैं। मात्र शब्दज्ञान से साहित्य समझ में आ जाता तो साहित्य का शास्त्र या आलोचना विकसित करने की जरुरत ही नहीं पड़ती।सामान्य रुप में किसी कृति को पढ़ना और साहित्यिक प्रणाली के जरिए पढ़ने में जमीन-आसमान का अंतर है।
तुलसी के नजरिए की धुरी है दीनों की सेवा और सबसे बड़ा पाप है उनका उत्पीड़न।लिखा है- "परहित सरिस धर्म नहिं भाई।परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।" फेसबुक से लेकर राजनीति तक चिह्नित करें उनलोगों को जो पीड़ा और पीड़ितों के पक्ष में लिखते हैं और रेखांकित करें कि वे किस ओर हैं।
मुगल बादशाहों के जमाने में कोल-किरातों का आखेट होता था,जो पकड़े जाते थे वे काबुल के बाजार में गुलाम के रुप में बेच दिए जाते थे,ब्रिटिशराज में इन लोगों को जरायमपेशा करार दे दिया गया, यह संदर्भ ध्यान में रखें और फिर तुलसी के यहां कोल-किरातों के प्रति व्यक्त नजरिए को समझने की कोशिश करें। तुलसी ने बीस पंक्तियों में कोल-किरातों की भेंट पर जो लिखा है वह बहुत ही मूल्यवान है।
कोल आदि को याद करते हुए लिखा "यह सुधि कोल किरातन्ह पाई।हरषे जनु नवनिधि घर आई" ,
अंत में तुलसी की टिप्पणी पढ़ें- "रामहिं केवल राम पियारा।जानि लेउ जो जाननिहारा।।"
पुरोहितों ने जो व्यवहार एससी-एसटी के साथ किया वही औरतों के साथ किया। इन सबको शिक्षा और उपासना से वंचित किया। तुलसी ने अपनी रचना में औरतों के लिए उपासना के द्वार खोल दिए। राम से मिलने,उनका सत्कार करने,उनका स्नेह पाने में औरतें सबसे आगे हैं।तुलसी ने जितनी आत्मीयता ग्रामीण औरतों और सीता के चित्रण में दिखाई है वैसी आत्मीयता अन्यत्र दुर्लभ है।
ग्रामीण स्त्रियां ही पूछ सकती हैं-
कोटि मनोज लजावन हारे।
सुमुखि कहहु को आहिं तुम्हारे।।
और सीता ही उनके प्रश्न का उत्तर दे सकती थीं-
बहुरि बदन बिधु अंचल ढाँकी ।
पियतन चितै भौंह करि बाँकी।।
खंजन मंजु तिरीछे नैननि ।
निज पति कहेउ तिन्हहिं सिय सैननि।।
तुलसी से हम क्या सीखें,यह आज भी सबसे जटिल सवाल है। तुलसी के नजरिए की विशेषता है संसार के असत्य का उद्घाटन। हम तुलसी के मार्ग पर चलना चाहते हैं तो मौजूदा संसार के असत्य का निरंतर उद्घाटन करें।असत्य को छिपाना तुलसीभक्ति या तुलसीविवेक नहीं है।
तुलसी के नजरिए की दूसरी बड़ी विशेषता है दुख की चर्चा। दुख को उन्होंने भक्ति से जोड़कर पेश किया। वे अपने बारे में,अपने समाज और युग के बारे में सबसे ज्यादा क्रिटिकल हैं।हम सोचें कि क्या हम क्रिटिकल हैं ?
तुलसी की अन्य विशेषता है मनुष्य के आगे हाथ मत फैलाओ । हम सब हाथ फैलाने की बीमारी के बुरी तरह शिकार हो गए हैं हमारे अन्दर किसी तरह का आत्मसम्मान और आत्मबोध बचा ही नहीं है ।

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