द्वंद्व या संघर्ष के सिद्धांत का प्रेरक रूप मार्क्स को जर्मन दार्शनिक हेगेल से मिला था।यह हेगेल का विकास का सिद्धांत भी था।मार्क्स की नजर में उसमें कमी यह थी कि हेगेल प्रकृति और समाज का आधार आइडिया या विचार को समझते थे!
मार्क्स ने लुडविग फायरबाख की इस बात को सही माना कि मस्तिष्क से विचार पैदा होता है न कि विचार से मस्तिष्क। मस्तिष्क ही पदार्थ की उत्कृष्ट रचना है।अर्थात पदार्थ ही मूल है।
हेगेल की इस बात का कि विचारों के द्वंद्व से ही प्रकृति की रचना हुई और फिर समाज की,इसके आगे विचारों के द्वंद्व या संघर्ष से ही मानव समाज का इतिहास आगे बढ़ रहा है!मार्क्स ने यह कह कर इसका खंडन कर दिया कि प्रकृति पदार्थिक रचना है।इसकी रचना और इसके विकास में विरोधी गुणों वाले तत्वों के द्वंद्व की भूमिका है।और मनुष्य या मानव समाज प्रकृति के अभिन्न अंग है।
मनुष्य के जीवन की द्वंदात्मक दशाएं ही उसे प्रकृति से द्वंद्व करने की प्रेरणा देती हैं और वह उसी से अपने जीवन को चलाने की वस्तुओं को प्राप्त किया करता है।
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