शनिवार, 4 अगस्त 2018

डिजिटल,इलेक्ट्रॉनिक ,प्रिंट,श्रव्य और तमाम सोसल मीडिया में दलित सांसदों के असंतोष की प्रतिध्वनि से घबराकर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को निरस्त करने की ठान ली है,जो एस सी /एस टी एक्ट के बरक्स सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों पारित किया था! मोदी सरकार की इस हड़बड़ी से ऐंसा लगता है कि मानों सारे 'सवर्ण' पैदायसी बदमाश हैं और सारे दलित मानों पैदायशी ईमानदार और शांति प्रिय हैं! भारतीय समाज और राजनीति में ऐंसा कोई उदाहरण नहीं जहाँ दलितों को जिम्मेदारी नहीं दी गयी हो। अतीत में 40 साल केंद्रिय मंत्री रहे बाबू जगजीवनराम,उनकी सुपुत्री लोकसभा स्पीकर -मीराकुमार,भूतपूर्व ग्रह मंत्री सुशील शिंदे से लेकर एनडीए के राम विलास पासवान,करिया मुण्डा,मरांडी,माझी कुलस्ते,उदितराज और अठावले जैसे हजारों दलित नेता और वरिष्ठ अधिकारी-सभी यह जानते हैं कि सत्तासुख किस चिड़िया का नाम है?जबकि लाखों-करोड़ों सवर्ण मजदूरों और किसानोंका भी राष्ट्र के निर्माण में उतना ही योगदान है जितना कि दलित-आदिवासी भाइयों का! दरसल समस्या सवर्ण बनाम दलित की नही है!बल्कि समस्या राष्ट्रीय सर्व संपदा के बटवारे की है, रोजगार के अवसरों की है। जनसंख्या विस्फोट और पूंजीवादी व्यवस्था के चलते सरकारी क्षेत्र में नौकरी के अवसर बहुत कम हो गये हैं,ऐंसे में गरीब दलितवर्ग के पास आजीविका के जो पुराने परम्परागत साधन हैं,यदि वह उन्हें छोड़ देगा तो उनके लिये आजीविका के विकल्प क्या होंगे?इधर आरक्षण के नाम पर जाट,पटेल-पाटीदार और गूजर जैसे समाज भी सवर्ण समाज से दूर हो कर आरक्षण की मांग पर अड़े हुये हैं। चूँकि धनवान जाटों-पटेलों जैसे बड़े किसानों ने भी पिछड़ापन माँग लिया है। इसलिए अब बचा खुचा सवर्ण समाज अपने आप हासिये पर जा चुका है।अब तो भारत में कोई जाट है ,कोई पटेल है ,कोई पिछड़ा है और कोई अगड़ा है। कोई जैन है,कोई मराठा है,कोई सिंधी है,कोई -पँजाबी है,कोई तमिल-तेलगु-मलयाली है,कोई दलित,महादलित पिछड़ा,अतिपिछड़ा है! कोई आदिवासी-अल्पसंख्यक है। ऐंसा लगता है कि मानों असल भारतीय सिर्फ सवर्ण ही हैं! क्योंकि बाकी सब तो केवल अधिकारों की ही बात करते हैं। ऐसे लोग बहुत कम हैं जो देश के प्रति अपने कर्तव्य की भी बात करते हैं,और अपने आपको सिर्फ भारतीय समझते हैं!
श्रीराम तिवारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें