अधिकांस जन गण यह सोचते हैं कि कार्ल मार्क्स ने ही 'वर्ग संघर्ष' कराने कि शुरुआत की है!किन्तु यह सच नहीं है।वर्ग संघर्ष तो तब से चल रहा है,जब से मानव समाज का मुख्यत : दो परस्पर विरोधी वर्गों-श्रमजीवी और परजीवी वर्ग में विभाजन हुआ है!
'वर्ग संघर्ष' का अर्थ मात्र लड़ाई झगड़ा,मार पीट,तोड़ फोड़ ,हड़ताल,विरोध प्रदर्शन,नारे बाजी, हिंसा इत्यादि ही नहीं है। श्रमजीवी वर्ग का मन ही मन दुखी होना,शांतिपूर्ण ढंग से निवेदन करना-आदि भी वर्ग संघर्ष के ही प्रछन्न रूप हैं।
मार्क्स ने 1845 में अपनी 28 साल की उम्र में फायरबाख पर आधारित लेख में अपने पूर्ववर्ती सभी विचारकों के उस सिद्धांत को स्वीकार किया कि 'मनुष्य की भौतिक दशाएं उसके चरित्र का निर्माण करती हैं, किन्तु मार्क्स ने उसमें अपनी यह बात भी जोड़ दी कि वह मनुष्य ही है जो उन दशाओं का निर्माण करता है।इस संदर्भ में यह कहा कि शिक्षक को भी शिक्षण की जरूरत होती है।इसी लेख में मार्क्स का यह प्रसिद्ध कथन है कि 'दार्शनिकों ने अबतक ,दुनिया क्या है ?केवल इसकी व्याख्या की है, किंतु असली सवाल तो इस दुनिया को बदलने का ही है।
आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि इतिहास रचने और उसे आगे बढ़ाने का काम अच्छे अच्छे विचार, विचारक, संत, महात्मा राजा,महाराजा,योद्धा इत्यादि ही करते हैं।
मार्क्स एंगेल्स ने मानव समाज और उसके इतिहास के वस्तुवादी अर्थात वैज्ञानिक विश्लेषण से इस बात को सिद्ध किया है कि इतिहास का निर्माण और उसका विकास श्रमजीवी समाज द्वारा अपने जीवन की अच्छी दशाओं के लिए किए जाने वाले सतत् संघर्षों के द्वारा हुआ है और होगा।
मार्क्स एंगेल्स ने मानव समाज और उसके इतिहास के वस्तुवादी अर्थात वैज्ञानिक विश्लेषण से इस बात को सिद्ध किया है कि इतिहास का निर्माण और उसका विकास श्रमजीवी समाज द्वारा अपने जीवन की अच्छी दशाओं के लिए किए जाने वाले सतत् संघर्षों के द्वारा हुआ है और होगा।
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