शनिवार, 4 अगस्त 2018

राजनीति के मार्ग में,निहित स्वार्थकी भीड़।
पूंजीवाद के पूत हैं, भ्रस्टाचार के नीड़ ।।
जातपाँत की बोलियां,भाषण बोल कबोल ।
वोट जुगाडू खेल के ,बजते नीरस ढोल ।।
लोकतंत्र की मांद में,कोई नहीं गम्भीर।
भाषणबाज नेता बड़े,बातों के शमशीर।।
भारत के जनतंत्र को,लगा भयानक रोग।
सत्तापक्षमेंजा घुसे ,घटिया शातिर लोग।।
नयी आर्थिक नीति ने, किया देश कंगाल।
काजू-किशमिश हो गयी ,देशीअरहर दाल।।
रुपया खाकर बैंक का,माल्या हुआ फरार।
पक्ष विपक्ष में हो रही,फोकट की तकरार।।
भारत के बाजार में,अटा विदेशी माल!
डालर ही मदमस्त है,रुपया हुआ हलाल!!
अच्छे दिन उनके हुए,जो मंत्री और दलाल।
मुठ्ठी भर धनवान भये ,बाकी सब कंगाल।।
जात-वर्ण आधार पर,आरक्षण की नीति।
बिकट बढ़ीअसमानता,निर्धनजनभयभीत!!
आवारा पूँजी कुटिल,नाच रही चहुं ओर।
मल्टीनेशनल लूटते,दुष्ट मुनाफाखोर।।
बढ़ते व्ययके बजटकी,कुविचारित यहनीति!
ऋण पर ऋण लेते रहो,गाओ ख़ुशीके गीत !!
धीरे धीरे सब हुये,राष्ट्र रत्न नीलाम।
औने -पौने बिक गए ,बीमा -टेलीकॉम।।
लोकतंत्र की पीठ पर,लदा माफिया राज।
ऊपर से नीचे तलक,बंधा कमीशन आज।।
वित्त निवेशकों के लिए ,तोड़े गये तटबंध।
आनन-फानन कर दिये,जनविरुद्ध अनुबंध !!
ऊंचे महलों के लिये,उजरत निर्धन नीड़!
यत्र तत्र धर्माधता, भावुक हिंसक भीड़!
श्रीराम तिवारी

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