शुक्रवार, 31 मार्च 2023

स्वधर्मे निधनम् श्रेय....पर धर्मो भयावह..."

 क्या ये संभव था कि बुद्ध शाक्य रहते हुए अपने वंश की धार्मिक परंपराओं को मानते हुए"बुद्धत्व" प्राप्त कर लेते? ये छोड़ना क्यूं ज़रूरी था बुद्ध के लिए? क्यूं ज़रूरी था कि वो एकदम नई यात्रा पर निकलते सत्य की खोज में? क्यूं नहीं वो किसी ऋषि या मुनि से योग या वैसी कोई दीक्षा ले कर महल में बैठ कर ही "बुद्धत्व" पा लेते?

अपने कभी सोचा है कि आप का सम्पूर्ण "व्यक्तिव" क्या है? जैसे मैं अगर श्रीराम तिवारी हूँ ,तो मैं कौन हूँ? दरअसल श्रीराम तिवारी कुछ भी नहीं सिवाए मेरे अतीत और भूत की "याद" या "स्मृति" के.. ! श्रीराम तिवारी वो है जो फ़लाने का बेटा है.. वो फलां जगह पैदा हुआ.. फलां स्कूल में पढ़ा और फलां धर्म मानता है.. बचपन से लेकर अब तक कि जितनी स्मृतियां हैं, वो मुझे श्रीराम तिवारी बनाती हैं.. अगर किसी तरह से मेरी याददाश्त चली जाय तो मैं ख़ुद भूल जाऊंगा कि मैं कौन हूँ.. आपको मुझे याद दिलाना पड़ेगा कि श्री तुम्हें याद है,हम और तुम वहां साथ जाते थे, उस स्कूल में साथ पढ़ते थे?"..
अगर मुझे यह याद न आया तो मेरे लिए मेरा ही वजूद ख़त्म होगा ही,आपके लिए भी श्रीराम का वजूद ख़त्म हो जाएगा.. क्यूंकि फिर आप जब मुझसे मिलेंगे तो तो नए आदमी से मिल रहे होंगे जिसके पास श्रीराम की कोई याद नहीं होगी.. आप चाहते हुए भी ताबिश को दुबारा नहीं पाएंगे !
हमारा अतीत और हमारी यादें ही हमें हमारा "व्यक्तित्व" होती हैं.. इसको बड़े पैमाने पर देखें और समाज के परिपेक्ष्य में देखा जाएं तो हर समाज,जाति, धर्म और पंथ का भी अपना एक व्यक्तित्व होता है जो उसके "अतीत" से बनता है.. मुसलमान समाज मतलब वो जो चौदह सौ साल पहले आये पैग़म्बर और उनकी किताब को मानता हो.. उस समाज से "पैग़म्बर" और उनकी किताब का "अतीत" अगर आप ग़ायब कर देंगे तो वो समाज मुस्लिम समाज नहीं होगा, वो कुछ दूसरा हो जाएगा.. ऐसे ही हिन्दू और ऐसे ही अन्य धर्मों के समाज का अपना अतीत है और वही उस समाज का "व्यक्तित्व" बनता है!
सत्य की खोज का प्रथम चरण होता है उस "अतीत" से छुटकारा.. जितनी गहराई से आप अपने अतीत से छुटकारा पाएंगे उतनी जल्दी आप सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे.. आपने देखा होगा कि अगर आप किसी गुरु के पास जाते हैं और उसके शिष्य बनते हैं तो वो आपको एक नया "नाम" देता है.. एक नए तरह के कपड़े आपको पहनाएगा.. ये सारी कवायद आपको उस अतीत से बाहर ले जाने की होती है..मगर अगर आप सारी उम्र पूजा करते रहे हैं और आपका वो गुरु भी आपको बस पूजा का नया ढंग बता कर एक नए देवी या एक नए देवता को आपको पकड़ा देता है तो अतीत से छूटने की सारी कवायद बेमानी हो जाती है.. एक ढोंग होता है बस.. उस से ज़्यादा नहीं!
बुद्ध के ऊपर बोध प्राप्ति से पूर्व अनेक हिंदू जैन साधु संत योगी जनों के प्रछन्न ज्ञान का प्रभाव ऑलरेडी था!इसीलिए बुद्ध उसी पुरातन परंपरा का अनुगमन करते हुए अपने शिष्यों,भिक्खुओं को नया नाम देते थे.. नए कपड़े देते थे.. उनके रहन सहन का सारा ढंग बदल देते थे,कहने को वे अपने अतीत से छूट गये थे,किंतु वे संस्कृत शब्दों को पाली प्राकृत में बदलने के अलावा नया कुछ नही करते थे!
चूंकि नया संदेश मानव समाज को अपनी और आकर्षित करने में कारगर होता है अतएव उन्होंने चतुराई से धार्मिक भाषांतरण पर ज्यादा जोर दिया! चूंकि गौतम सिद्धार्थ एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय राजकुमार थे,अत: उन्हें क्षत्रिय राजाओंका सहज सानिध्य मिलता चला गया! जो भी वैदिक सनातनी आस्तिक उनके पास आता था तो उस से कहते थे कि "कोई ईश्वर नहीं है".जब कोई नास्तिक आता था तो उसे ईश्वर के बारे में बताते थे..जो व्यक्ति ये मान रहा होता था कि ईश्वर है भी और नहीं भी,उसके सामने ईश्वर के सवाल पर बुद्ध मौन हो जाते थे..ताजुब है कि भगवान आदि शंकराचार्य के अवतरण से पूर्व वैदिक आर्यों ब्राह्मणों को बुद्ध और उनके अनुयाईयों की इस बौद्धिक बाजीगरी का पता नही चला!
बुद्ध दावा करते थे कि उनका काम था आपको अतीत की मान्यताओं से छुटकारा दिलाकर बोध कराना,"जाग्रत" करना.. ये बहुत ज़रूरी होता है सत्य की खोज के लिए.. दरसल यह जरूरी है आपको कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर लाने के लिए!
बुद्ध के मतानुसार अगर आप पंडित घर में पैदा होकर आध्यात्मिक हैं तो उसके "बुद्धत्व" पाने की संभावना न के बराबर है ! इसका आशय यह भी है कि मुसलमान यदि मुसलमान घर में पैदा होकर मुसलमान बने रहते हुए "सूफ़ी" बनता है तो उसके "बुद्धत्व" पाने की संभावना नगण्य है.!
उनके परिवर्ति कट्टर बौद्ध अनुयायों ने इस मिथ का खूब प्रयोग किया ! योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा है:-
"स्वधर्मे निधनम् श्रेय....पर धर्मो भयावह..."
दुनिया का जो भी शख्स अपने मूल धर्म से कट कर दूसरों के बहकावे में आकर वो बस खेलेगा एक पंथ से दूसरे पंथ की अंधेरी सुरंगों में! थोड़ी बहुत विचारधारा का दांव पेंच.. बस.. उसके बाद सत्य खोजने की संभावना "नगण्य" हो जाती हैं! जो "बौद्ध" पैदा होते हैं वो कुछ ज़्यादा कमाल नहीं कर पाते हैं क्योंकि बुद्धिज़्म उनके लिए उनका "कंफ़र्ट ज़ोन" होता है..जो सिद्धार्थ पैदा होते हैं उनके बुद्ध बनने की संभावना बहुत बड़ी होती है और सिद्धार्थ केवल सनातन संस्कृति याने वैदिक दर्शन में ही जन्म लेते हैं!

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