शुक्रवार, 31 मार्च 2023

कलियुग

 वियना (आस्ट्रिया) के मूल निवासी वर्तमान में ड्रेस्डन जर्मनी में रह रहे श्री एडगर लैटन जी का आज लिखा संस्कृत का छन्द और भावार्थ देखिए- (मुग्ध हुए बिना न रह सकेंगे!)

सर्वत्रैव यदा निपीडिततमा रे साधवो राक्षसै
र्धर्मग्लानिरियं समीक्ष्यत इह क्षीयेत नीतिर्नृणाम् ।
विद्याविस्मरणं तमःप्रसरणं कष्टं रुजां वर्धनं
कालो हन्त कलेः स्वयं भुवि तदा प्रादुर्भवेद्बाधकः ॥
(जैसे अच्छे लोग हर जगह राक्षसों द्वारा अत्यधिक उत्पीड़ित होते हैं,
संसार में उचित आध्यात्मिक व्यवस्था का ह्रास दिखाई देता है,
और लोगों की नैतिकता विलुप्त हो जाती है, ज्ञान विस्मृत होने लगता है,
अज्ञानता का अंधकार व्याप्त हो जाता है, और शोक, रोग बढ़ते हैं,
तब कलियुग स्वयं को बहुत ही परपीड़क अपराधी के रूप में प्रकट करता है!)
As good people everywhere get intensely oppressed by demons,
degradation of proper spiritual order in the world becomes visible,
and morality of people disappears, as knowedge gets forgotten,
darkness of ignorance becomes prevalent, and, alas, diseases grow,
then Kali-yuga manifests itself as the very sadistic perpetrator!
-Shri Gajendra Patidar

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