शुक्रवार, 24 मार्च 2023

क्रांति अमर रहे

 शहीद भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु का नाम सदा अमर रहे ! इंकलाब जिन्दावाद !! क्रांति अमर रहे !!!

92 साल पहले आज ही के दिन साम्राज्यवादी अंग्रेज हुक्मरानों द्वारा महज एक खास क्रांतिकारी शहीद भगतसिंह ही नहीं अपितु एक कालजयी शानदार विचारधारा को भी फांसी दी गई थी। जो लोग भगतसिंह को केवल एक क्रांतिकारी या शहीद मानते हैं उनकी निष्ठां को नमन। किन्तु वास्तव में भगतसिंह एक महानतम विचारक,चिंतक,प्रगतिशील साहित्यकार ,
क्रांतिकारी पत्रकार और उद्भट स्वाधीनता सेनानी थे।
भगतसिंह के सहयोगी कामरेड शिव वर्मा द्वारा संपादित पुस्तक "शहीद भगतसिंह : चुनी हुई कृतियाँ "और उनके मार्फ़त लिखी गई बहुमूल्य "भूमिका'' में वह सभी सामग्री उपलब्ध है जो शहीद भगतसिंह के चाहने वालों को उनके बारे में सही -सही जानकारी देने में सक्षम है।
उक्त क्रांतिकारियों की शहादत के बाद से ही भारत में हर पार्टी और हर नेता- अमर शहीद भगतसिंह को अपने मन माफिक परिभाषित करने में जुट गया है । इसमें कोई बुराई नहीं। अमर शहीद तो सभी की श्रद्धा का पात्र होता ही है। किन्तु जब कोई नकारात्मक ग्रुप या व्यक्ति शहीद भगतसिंह को 'हाइजेक' करने की कोशिश करे याने उसके अपने नकारातम्क विचारों में पिरोने की कोशिश करे तो तदनुरूप विमर्श लाजमी है। दुनिया जानती है कि भगतसिंह तो जातिवाद,साम्प्रदायिकता,पूंजीवाद तथा साम्राज्यवाद के घोर विरोधी थे। भारत में सबसे पहले उन्होंने ही नारा लगाया था "इंकलाब जिन्दावाद''. फांसी के तख्ते से उन्होंने ही सबसे पहले हुंकार भरी थी कि "साम्राज्य वाद का नाश हो "अपने एक प्रसिद्ध आलेख में सर्वप्रथम उन्होंने ही कहा था कि :-
' 'जब तलक दुनिया में शक्तिशाली मुल्कों द्वारा -निर्बल राष्ट्रों का शोषण होता रहेगा ,जब तलक दुनिया में शक्तिशाली लोगों द्वारा निर्बल व्यक्तियों का शोषण होता रहेगा ,जब तक दुनिया में सामाजिक -आर्थिक और राजनैतिक असमानता है ,जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण -उत्पीड़न जारी है -तब तलक क्रांति के लिए 'हमारा' संघर्ष जारी रहेगा "
वैसे तो आरएसएस,शिवसेना,सी पी एम् ,सीपीआई तथा प्रगतिशील-जनवादी साहित्यकारों के कार्यालयों में ,अण्णा हजारे के मंच पर ,स्वामी रामदेव के मंचों पर भगतसिंह की तस्वीरें लगी हुई देखीं जा सकतीं हैं। कविवर ओमप्रकाशसिंह 'घायल',कृष्ण कुमार अष्ठाना, चकोर ,सत्तन जी और कुमार विश्वाश जैसे कवियों की कविताओं में भी भगतसिंह के तेवर नजर आते हैं.
किन्तु वामपंथ को छोड़कर बाकी के सभी में अंध-राष्ट्रवाद ,साम्प्रदायिकता ,पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की सड़ांध कूट कूट कर भरी है.साथ ही भगतसिंह के 'नारों' का अर्थ भी ये नहीं जानते। यदि जान जायंगे तो ये सब भी कटटर 'कम्युनिस्ट' हो जायेंगे। क्योंकि भगतसिंह ने स्वयं लिखा है कि वे 'वोल्शेविक" हैं। वोल्शेविक का क्या मतलब होता है यह बताने की जरुरत नहीं। फिर भी कोई मंदबुद्धि है तो उसे वह पुस्तक एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए जो फाँसी के कुछ क्षणों पहले भगतसिंह ने पढ़ डाली थी। उस पुस्तक का नाम है "लेनिन की जीवनी " है।
आज से ४५ साल पहले की बात है। विश्वविद्द्यालयीन छात्र जीवन के दौरान सागर के लकड़ी -चद्दर वाले-खण्डहरनुमा इकलौते किराए के कमरे [ स्थानीय बोली में -कोठा] में रहता था। उस दौरान मेरे पास निर्धारित कोर्स सम्बन्धी सेकंड हेंड पुस्तकों के अलावा रामायण ,गीता और हनुमान चालीसा की भी एक -एक पुस्तिका हुआ करते थी। हनुमान जी की एक तस्वीर भी हुआ करते थी । उस छाती फाड़ तस्वीर में श्रीराम जानकी और लक्ष्मण प्रकट हो रहे थे। इसके अलावा एक मात्र अनमोल पूँजी मेरे पास और भी थी । एक अदद गैर धार्मिक तस्वीर-जिसमें शहीद भगतसिंह,राजगुरु,सुखदेव तथा चंद्रशेखर आजाद का ओज दमकता रहा था।वो तस्वीर- जिसमें भगतसिंह के सिर पर हैट है ,चंद्रशेखर आजाद मूँछ ऐंठ रहे हैं,राजगुरू -सुखदेव भी शौर्य मुद्रा में सीना ताने खड़े हैं- उस दौर में किसी घर में इस तस्वीर का होना राष्ट्रीय चेतना से सराबोर होने ,प्रगतिशील होने तथा शिक्षित - सुसभ्य होने का द्दोतक हुआ करता था। यह तो याद नहीं कि किस प्रेरणा से ये तस्वीर मेरे समीप आई। शायद किसी हिंदी फ़िल्म में स्वाधीनता संग्राम के ह्रदय विदारक दृश्यों से प्रभावित होकर या किसी राष्ट्र कवि की ओजस्वी कविता से प्रेरित होकर कमरे में लगाईं होगी। हालाँकि उस दौर में देश के विभाजन विषयक तत संबंधी मर्मान्तक साहित्य का सृजन इफरात से हो रहा था। एक ओर शहादत हसन मंटो,इस्मत चुगताई,भीष्म शाहनी ,अब्दुल गफ्फार खान जैसे लोगों ने आपबीती लिखी तो दूसरी ओर बालीबुड ने भी - धरती कहे पुकार के ' 'पूरब -पश्चिम' 'दस्तक' 'नया दौर 'मदर इंडिया ' जैसी अनेक राष्टवादी फिल्मों का निर्माण किया। आजादी मिलने के बाद देश की गुलामी के इतिहास की तपिश से प्रेरित इतिहास लेखन का दौर बुलंदियों को छूने लगा। इसी दौर में राष्ट्रवाद के अतिरेक तथा स्वाधीनता संग्राम के बलिदानियों के प्रति कृतज्ञ भाव से शायद मेने यह तस्वीर अपने 'अध्यन कक्ष' में लगाईं होगी ।
इतने सालों बाद भी यह तस्वीर मैंने अभी तक सम्भाल रखी है। हर साल १५ अगस्त , २६ जनवरी, २-अक्टूबर ,१४ नवम्बर को और खास तौर पर २३ -मार्च को इस तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करता हूँ। इस तस्वीर के कारण मुझे विश्व के तमाम क्रांतिकारी साहित्य ही नहीं वरन विभिन्न क्रांतियों के इतिहास को सरसरी तौर पर जानने -समझने की भी प्रेरणा मिली। इस के कारण ही भारत और विश्व के महानतम बलिदानियों के विचारों को जानने -समझने की उत्कंठा उत्पन्न हुई और ततसम्बन्धी अध्यन की अभिरुचि ने ही मार्क्स, एंगेल्स ,लेनिन, चेग्वेरा ,रोजा लक्जमवर्ग , गोर्की ,आष्ट्रोवस्की ,हो-चिन्हमिन्ह , ईएमएस, एकेजी ,बीटीआर ,स्टालिन या माओ ही नहीं बल्कि फायरबाख ,वाल्टेयर ,रूसो , जार्ज वाशिंगटन और गैरी बाल्डी जैसों को भी पढ़ने का मौका मिला। इन्हें पढ़ने -समझने के बाद ही ये जाना कि इन सबके वैचारिक सारतत्व का नाम ही 'शहीदे आजम भगतसिंह " है। इन दिनों भारतीय जन-मानस में और विशेषतः अंधराष्ट्रवादी ग्रुपों व्यक्तियों और संगठनों में न केवल इन नायकों के उत्सर्ग की अतिरेकपूर्ण कहानियाँ गढ़ी जा रही हैं , अपितु शहीदों के व्यक्तित्व् का चमत्कारिक रूप ह्रदयगम्य किया जा रहा है। भगतसिंह के क्रांतिकारी 'विचारों' को जाने बिना ही उन्हें साम्प्रदायिक और फासीवादी लोग अपना हीरो सिद्ध करने में जूट हैं। यह केवल अनैतिक कदाचार ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय अक्षम्य अपराध भी है।
अण्णा हजारे ,केजरीवाल ,बाबा रामदेव या कांग्रेस ही नहीं बल्कि 'संघ परिवार' भी शहीद भगतसिंह के मुरीद बनने का ढोंग करते हैं। किन्तु वे यह जान बूझकर छिपा जाते हैं कि शहीद भगतसिंह ही नहीं बल्कि उनके तमाम साथियों की 'विचारधारा' क्या थी।केवल शहीद भगतसिंह ही नहीं बल्कि उनके तमाम साथी भी जिस 'हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ' के सदस्य थे उसके बारे में संघियों का ,कांग्रेस का , भाजपा का और 'आप' का क्या ख्याल है ? सभी अपने आप को गर्व से 'वोल्शेविक "कहा करते थे. क्या बाबा रामदेव यह जानते हैं ? क्या संघी , केजरीवाल ,अण्णा या रामदेव जो 'इंकलाब जिन्दावाद 'का नारा लगाते हैं ,उन्हें उसका अभिप्राय मालूम है ? ' साम्राज्यवाद मुर्दावाद ' का नारा लगाने वाला केवल वही हो सकता है जो लेनिन और स्टालिन के विचारों से सहमत हो। चूँकि भगतसिंह लेनिन के अनुयायी थे इसलिए उन्हें यह हक था कि वे 'साम्राज्यवाद -मुर्दावाद 'या 'इंकलाब जिन्दावाद ' का नारा बुलंद करें। इन दिनों भारत में फासीवादी ताकतें , व्यक्तिवादी अराजक किस्म के नेता ,साम्प्रदायिक उन्मादी सभी भगतसिंह का और उनके साथियों का नाम लेकर राजनीती कर रहे हैं वे दरशल भगतसिंह को न तो जानते हैं और न ही उनके विचारों के समर्थक हैं ये ढोंगी ,पाखंडी ताकतें सत्ता प्राप्ति के लिए देश के अमर शहीदों का बेजा इस्तेमाल कर रहीं हैं।
शहीद भगतसिंह अमर रहे ! इंकलाब जिन्दावाद !! क्रांति अमर रहे !!!
श्रीराम तिवारी

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