आम तौर पर दलित विमर्श के संदर्भ में भारतीय *एकता में अनेकता* सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, भारतीय सभ्यता और सस्कृति की घोर उपेक्षा की जाती रही है!सवर्ण विरोधी लेखन के पर निंदक न तो संस्कृत व्याकरण अथवा साहित्य के अध्येता रहे हैं न संस्कृत वांग्मय के बारे में जानते हैं! इसीलिए अतीत में कुछ दलित नेताओं ने सनातन धर्म के मूल्यों का सम्मान नही किया! अपने ही वास्तविक इतिहास से अनभिज्ञ वे हिंदू विरोधी लेखक *भारतीय स्वाधीनता संग्राम* के असली नायकों के साथ न्याय नहीं कर सके !
पानी पी पी कर सवर्णों के खिलाफ विष बमन करने वाले तो भूल जाते हैं कि महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी तात्या टोपे,रानी झाँसी,मंगल पांडे,चंद्रशेखर आजाद (तिवारी), पं रामप्रसाद 'बिस्मिल', चाफेकर बंधु ,आगरकर बंधु,स्वामी श्रद्धानंद,लाला लाजपत राय और शहीद भगत सिंह जैसे महान हुतात्मा सबके सब सवर्ण थे!इन तमाम शहीदों के मन में हमेशा दलित शोषित वंचित समाज के प्रति करुणा का भाव जाग्रत रहा। इन शहीदों के प्रति इस्लामिक शासकों और अंगरेजी शासकों का शत्रुतापूर्ण रुख तो समझ में आता है, किंतु दलित लेखकों और राजनीतिक नेताओं ने इन अमर शहीदों की घोर उपेक्षा की है! यह मेरी समझ से परे है!
स्वतंत्रता संग्राम में जो महान बलिदानी ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ते हुए शहीद हुए,उनमें से अधिकांश सवर्ण या ब्राह्मण जाति के हुआ करते थे! अब आजाद मुल्क में सवर्णों को छोड़कर विशेष रूप से निर्धन ब्राह्मणों को छोड़कर बाकी सब आरक्षण की मलाई के लिये मचलते रहते हैं!
इधर सवर्ण वर्ग या ब्राह्मण वर्ग ने अपना सर्वस्व मानवमात्र को अर्पित करते हुए भारतकी एकता- अखंडता, सभ्यता संस्कृति और सनातन धर्म को बचाने का ठेका ले रखा है! इसके अलावा 'गजवा ए हिंद', पीएफआई, चीन -पाकिस्तान से भारत को बचाने के लिए अधिकांश सवर्ण अपना बलिदान देने को तैयार हैं!
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