ग़ज़ल:-
इस राज़ को क्या जाने साहिल के तमाशाई,
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई है !
चलते हुए बादल के साये के त-अक्कुब में,
ये तशनालबी मुझको सहराओं में ले आई है!
ये जब्र भी देखे हैं तारीख की नज़रों ने खूब,
लम्हों ने खता की ,सदियों ने सज़ा पायी है !!
क्या सानेहा याद आया मेरी तबाही का दोस्त,
क्यूँ आपकी नाज़ुक सी आँखों में नमी आई है!
इस राज को क्या जाने साहिल के तमाशाई,
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई है!!
तसलसुल - continuous, त-अक्कुब - to chase,
तशनालबी - thirst, जब्र - zulm, सानेहा - incident
:- Shayer -Mujaffer Razmi
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