जब जापान में सुनामी आयी तो एक बूढ़ी औरत वहाँ पर छाते लगाकर कुछ इलेक्ट्रिक सामान बेच रही थी. BBC के रिपोर्टर ने उससे रेट मालूम किए तो अंदाज़ा हुआ कि बूढ़ी औरत मार्केट से सस्ते दाम पर सामान बेच रही है. जब रिपोर्टर ने उस बूढ़ी औरत से उसकी वजह पूछी तो उसने कहा कि मैं मार्केट से होलसेल पर सामान लाती हूँ और अपने मुसीबत में फंसे लोगों को उसी रेट पर सामान बेच देती हूँ. यह मेरा, मेरे देश के लिए योगदान है. यह राष्ट्रवाद है.
हमारा राष्ट्रवाद नारे लगाने भर का है. विगत वर्ष कोरोना जब भरमार पर पहुँचा तब हैंड सेनिटाईज़र और फ़ेसमास्क हमारे यहाँ दस गुना क़ीमत पर बिकने लगे थे ! भारत में यदि जरा सी अफ़वाह उड़े,तो पड़ोस की दुकान पर आटा, चावल, दाल की दरों में बढ़ोतरी हो जाती है! हद तो यह है कि कहीं बाढ़ आ जाए, दुर्घटना हो जाए ,लोग मुसीबत में फँसे हों तो धंधेबाज अपनी औकात पर आ जाते हैं!
याद कीजिये उत्तराखंड की बाढ़ में फँसे बदकिसिमत लोगों को जब आसपास के गाँव वालों ने 500-500 रुपये की एक पानी की बोतल बेची थी! बाढ़ में फंसे लोगों को अपने घर संपर्क करने के लिए फोन बूथ वाले एक कॉल करने के 10 से 20 ₹ तक लिए गये थे.
सत्य यही है कि आजादी के 75 सालों में हमारे देश ने चुल्लू भर तरक्की की है,किंतु हमारे दौर का मनुष्य मुनाफ़ाखोरी,सूदखोरी मिलावटखोरी,मुफ्तखोरी और मक्कारी के दलदल में फँसकर संवेदनहीन हो गया है!
हमारा राष्ट्रवाद,हमारा सर्वसमावेशी विकास, हमारी आजादी,हमारा लोकतंत्र,हमारी राष्ट्र भक्ति केवल एलीट क्लास की बौद्धिक जुगाली और अफसरशाही की ऐशगाह मात्र है ! सत्ता के ये तमाम खर्चीले संस्थान उस मनुष्य के किस काम के ,जो हासिये पर है,बेरोजगार है,बेघर है,भूमिहीन है और सर्वहारा है! वो शासक और वो सिस्टम किस काम का जो संकट में अपने ही दीन हीन नर नारियों की बुरे समय में सहायता न करें !
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