एक बात स्पष्ट है कि पूरे हिन्दू समाज में जातीय आइडेंटिटी हिन्दू आईडेंटिटी पर बहुत ही भारी पड़ती है. पर दाएं से बाएं इसका एक स्पेक्ट्रम है...
1. सबसे दाएं, जो सिर्फ हिन्दू आईडेंटिटी को सब्सक्राइब करते हैं और कास्ट आइडेंटिटी उनके लिए जरा भी मतलब नहीं रखती.
2. उसके बाएं वे हैं जो अपनी कास्ट आइडेंटिटी से आइडेंटिफाई तो करते हैं पर उसका उनके व्यक्तिगत जीवन में खास कोई महत्व नहीं है और उनके लिए अपनी हिन्दू आइडेंटिटी ही ऑपरेशनल है.
4. उसके बाएं वे हैं जिनके लिए उनकी हिन्दू आईडेंटिटी और कास्ट आइडेंटिटी बराबर महत्वपूर्ण है और वे सोचते हैं कि वे दोनों में बैलेंस बना कर चलते रह सकेंगे. ये सबसे व्यथित लोग हैं, जो आशा करते हैं कि ऐसा अवसर जीवन में न आए कि उन्हें दोनों में से एक को चुनना पड़े.
5. फिर वे आते हैं जिनके लिए उनकी हिन्दू आईडेंटिटी तो महत्वपूर्ण है लेकिन जाति की बात आते ही उनके भीतर का जातिवादी भारी पड़ने लगता है.
6. उसके बाएं वे हैं जिनके लिए अपनी हिन्दू आईडेंटिटी सिर्फ इंसीडेंटल है लेकिन कास्ट आइडेंटिटी ही महत्वपूर्ण है और कास्ट की बात आती है तो वे हिंदुत्व का चोला फेंक कर नंगे खड़े हो जाते हैं.
7. और सबसे बाएं वे खड़े हैं जिनके लिए उनकी हिन्दू आईडेंटिटी का बाल बराबर मतलब नहीं है. उनके लिए कास्ट आइडेंटिटी ही सबकुछ है और उसकी सुप्रीमेसी बचाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं, कहीं भी जा सकते हैं...ऐसे लोग पलक झपकते ही खतना करवा लेंगे, अगर पाला बदलने से उन्हें मुस्लिम समाज में सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है. ये हिन्दू समाज का भाग सिर्फ इसलिए हैं कि उन्हें अपेक्षा है कि यहीं वे सत्ता से निकटता बनाए रख सकेंगे. यह वह माइक्रो क्लास है जिसके लालच का परिणाम पूरे देश ने भुगता है और जिसके कारण उनका अपना जातीय समाज गालियां खाता है. ये कंडीशनल हिन्दू हैं...
और अगर देश में शक्ति संतुलन बदलता है और उन्हें लगता है कि अब ये कभी सत्ता के नजदीक नहीं रह सकेंगे तो ये बिना किसी भय या धमकी के, सबसे पहले और स्वेच्छा से कन्वर्ट होंगे.
मुझे यह कोई भ्रम नहीं है कि हम रातों रात एक आदर्श समाज बन जायेंगे. मेरे लिखने का उद्देश्य सिर्फ यह है कि हमारे समाज का स्पेक्ट्रम यथाशक्ति बाएं से दाएं की ओर खिसके.
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