रविवार, 26 मार्च 2023

हिंदू ट्राइब एंड कास्ट

 (1800-1882, Part 1)

कुछ दिनों पूर्व हमारे डॉ भुपेन्द्र सिंह ने एक प्रश्न पूछा था कि वह कौन सा ऐसा 'समूह' है जो सबसे ज्यादा गाली सुनी है। उत्तर सबको पता था, लेकिन उनके वाल पर किसी ने भी प्रामाणिकता से शायद ही कोई उत्तर दे पाया हो। मैंने समूल स्तोत्र सहित प्रमाणिक एवं तथ्यों के साथ उत्तर देने का एक छोटा सा प्रयास किया है।
👉१८५७ की प्रथम स्वतंत्रता क्रांति से पूरा "ईट इण्डिया कम्पनी" डगमगा गई थी. इसके क्रांति के पश्चात ही "ईट इंडिया कंपनी' को हटा, ब्रिटिश गवर्नमेंट, भारत की सत्ता को अपने अधीन कर लेती है। १८६० ई में इंडियन पेनल कोड बनाया गया।
[यह थोड़ा जटिल एवं बड़ा विषय है। इसे समझने के लिए आपको 1850 के पहले तक भारत में क्या होता है। उसपर भी ध्यान देना पड़ेगा।]
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प्रश्न: सबसे पहले बैकवर्ड किसे कहा गया? आपस में बाँटने का नया आधार क्या था?
उत्तर: सर्वप्रथम, 1872 ई में, मुस्लिमों को 'बैकवर्ड क्लास विशेष प्रलोभन' (Social Inducements to Backward Class) की पहचान।
👉सन 1857 की क्रान्ति के उपरान्त, क्रिस्चन ब्रिटिश गोवर्नमेन्ट ने नयी योजना बनाई। सबको आपस में बांटो। इसी के तहत, Viceroy Mayo ने मुस्लिम शिक्षा पर पछतावा व्यक्त करते हुए, 7 अगस्त 1871 ई में, प्रस्ताव पारित किया कि "इतना बड़ा एवं महत्वपूर्ण समूह, किसी भी विद्रोह का सहयोग नहीं करना चाहिए।” 29 जुलाई 1872 ई में Governor Hobart ने है, जिसके तहत मुस्लिमों ले लिए एक अलग से पॉलिसी बनाई, “मद्रास प्रेसिडेन्सी सरकारी नौकरी में मुस्लिमों की निरन्तर विघटन, ब्रिटिश साम्राज्य के लिए अहितकारी है।" इसके बाद से मुस्लिमों को 'बैकवर्ड क्लास विशेष प्रलोभन' (Social Inducements to Backward Class) से पहचाना जाने लगा।
[यही से विक्टिमहुड की भावना भरना शुरुआत कर दी। ऐसा उन्होंने अफ्रीका में पहले ही कर चुके हैं]
👉मेयो (Mayo) के विचारों को उद्धृत करते हुए, होबार्ट (Hobart) ने अफसोस जताया कि मुसलमानों को उत्तीर्ण होना ही चाहिए, वे एक बार शासन करने थे, मुसलमानों को हिन्दुओं को परास्त कर देना चाहिए था, जिसे स्वयं वे बहुत हीन Race समझते थे, पूर्ण रूप से उनका राजनीतिक महत्व अधिक होता है, क्योंकि इसाई अंग्रज़ों से पहले, मुस्लिम ही हिन्दुओं पर राज करते थे। उसे राजनीतिक सत्ता में शामिल किया जाना चाहिए था।
सब कुछ पहले प्रयोग कर चुके थे। अब नया आधार बनाना ही था।
वह नया आधार क्या हो सकता है?
ब्रिटिश सरकार में नौकरी हेतु प्रतिनिधित्व!
ब्रिटिश सरकार में नौकरी हेतु, मुस्लिमों के लिए एक अलग शिक्षा व्यवस्था लागू की गई जिसके तहत स्पेशल उर्दू मीडियम में शिक्षा दिया जाने लगा। मुस्लिम शिक्षकों को नियुक्त किया गया। मद्रास यूनिवर्सिटी में पर्शिया और अरेबिक पढ़ाने के लिए विशेष प्रावधान किया गया। मुस्लिमों के लिए विशेष ग्रांट बनाई गई। उनकी स्कूल फीस आधी कर दी गई थी.[A]
[A] Source: Resolution No. 300 (Home Department, Education), dated 7 August 1871, paras 2–3, compared with Lord Mayo's Note.
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प्रश्न: मुसलमानों को तो अलग पहचान दे दी, लेकिन, हिन्दुओं के साथ क्या किया?
उत्तर: बहुत भयानक आधार अपनाते हैं।
👉आप सबने इसके पहले देख लिया कि कैसे, सन 1847 ई में, मैक्स मुलर एवं समस्त अन्य मिशनिरियों का गिरोह, बायबल के आधार पर, हिन्दुओं के ब्राह्मण को ArianTribe of Biblical Caucasus Race से जोड़कर, उन्हें विदेशी बताने की योजना बना चुके होते हैं। और इसी के तहत योजना थी कि ब्राह्मणो को बाध्य कर देंगे कि वे स्वीकार करें कि वे बुध्द ही हैं, बाहर से आए हुए Arian tribe ब्राह्मण ने यहाँ के बुद्धों को परास्त कर, सबको ब्रह्म धर्म थोप दिया। इसपर बहुत बारिकी से मूल स्रोत सहित लेख है। इसे पढ़ें!
👉यह सब करने के पश्चात, प्रोटेस्टेंट इसाई अंग्रेज अपने इस बँटवारे की योजना को आगे बढ़ाते हुए, भारत के लोगों को 'ट्राइब (Tribe)' 'कास्ट' एवं 'आउट कास्ट' की पहचान के रूप विभाजित करना आरम्भ करते हैं.
👉“Tribe” शब्द की उत्पत्ति बायबल से हुई है। उसी बायबल के उसके अनुसार विदेशी एरियन ब्राह्मण ट्राइब i.e. Arian Tribe of White Caucasus Race आक्रमण से पहले, यहाँ पर ब्लैक इथोपियन कशिस्ट की संताने (Ethiopian Black Cushist Tribe of Ham) यहाँ पर रहती थी. उन संतानों के समूह को ट्राइब कहा. Arian ब्राह्मण ट्राइब का हमला हुआ तो उसके पश्चात, इन दोनों के समूह का मिलन हुआ, उसके पश्चात यहाँ पर कास्ट/क्लास) का निर्माण हुआ. ब्राह्नणों ने जबरन सबको बांटा. कुछ ट्राइब ऐसे ही रह गए जिनका विदेशी ब्राह्मणों से बचे रहे, वे आज भी ट्राइब के रूप में ही हैं, कास्ट या क्लास का हिस्सा नही हैं. इसी आधार पर हिन्दुओं को आपस में बांटा।
👉यदि आपको विश्वास नहीं होता तो आप, १८७१-७२ ई में जब भारत की प्रथम सम्पूर्ण जनगणना को जरूर देखें, उसका अध्ययन करें। भारतीयों को हिन्दू के चार कास्ट (क्लास) के अलावा, उनके व्यवसाय को कास्ट माना, तथा कई प्रकार के ट्राइब की पहचान बनायी। Outcast भी बनाया। सबसे ज्यादा हास्यास्पद यह है कि इसमें Native क्रिस्चन कि पहचान भी बनाई। [B, Page 20]
👉Outcast शब्द भी बायबल से प्रेरित है। इसी OutCast पहचान को लगभग 50 वर्ष पाश्चत 'Depressed Class" नामक नई पहचान में परिवर्तित किया जाता है।[C]
👉ट्राइब्स के भी कई प्रकार Hill Tribe, Sonaths Tribe, Koles Tribes, Gonds Tribe, Khond Tribe etc. ये सबके सब पहले से ही Aboriginal Tribe से बने हैं। 🤦🏽‍♂️🤷🏼‍♂️ (B, Page 19)
👉1934 ई Mr Princep ने बनारस में एक जनगणना कि थी उसके अनुसार वहाँ पर ब्राह्मणों के 107 caste थी। फिर ये अचानक से, ब्राह्मण की मात्र एक कास्ट कैसे बन गई 1901 में? यह विचारणीय प्रश्न है। [B, Page 22]
[B]. Source: Memorandum on the Census of British India 1871-72.
👉यही वो वर्ष था, 1871, जिस वर्ष प्रोटेस्टेंट ब्रिटिश सरकार ने, Criminal Tribe Act 1871 पारित कर, भारत के ट्राइब या कास्ट या क्लास को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था। नए नए समूहों का ग्रुप को इसमें जोड़ते गए। पासीयों ने तो इसके विरुद्ध बहुत आन्दोलन किया था। 1952 के बाद यह कानून हटा दिया गया।[D]
[D] Souce: Criminal Tribe Act 1871
👉मनुस्मृति को जो भला बुरा कहते हैं, उन्हें इसके ऊपर ध्यान देना चाहिए, इस ‘क्रिमिनल ट्राइब एक्ट’ के बाद, इस देश के जनमानस पर क्या प्रभाव पड़ा होगा? वह भी तब, जब इस देश से 45 USD ट्रलियन आर्थिक लूट की होड़ मच चुकी होती है। चुने हुए लोगों को ही शिक्षा का अधिकार था।[E]
👉क्या माननीय डॉ अंबेडकर साहब ने कभी इस क्रिमिनल ट्राइब एक्ट एवं 45 USD ट्रिलियन लूट और इसके समाजिक प्रभाव के बारे में कभी कोई प्रश्न किया? वे तो अर्थशास्त्र में पीएचडी किए हुए थे। उन्हें यह प्रश्न तो सबसे पहले पूछना चाहिए था।
[वैसे बतला देता हूँ कि माननीय डॉ अम्बेडकर जी ने अपने जीवन में कभी भी मनुस्मृति नहीं पढ़ा है, ऐसा उन्होंने स्वयं लिखा है।]
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प्रश्न: ब्रिटिश शिक्षा पद्धति एवं सरकारी नौकरी में सबसे ज्यादा कौन सा वर्ग था? इसके कारण क्या थे?
उत्तर: निश्चित रूप में ब्राह्मण या उनके समतुल्य अन्य कास्ट को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकता। यह और अधिक प्रबल हो जाता है, जब “ईट इंडिया कंपनी” की पॉलिसी का भी मत ऐसा हो।
[इसके पहले १८१३ ई में ब्रिटिश पार्लियामेंट कानून बनाया था, जिसके अनुसार, वे भारतीय शिक्षा, विज्ञान एवं साहित्य को प्रोत्साहन देंगे उसके लिए आर्थिक सहायता भी देंगे।]
उदारहण स्वरूप:
👉1. प्रोटेस्टेंट ब्रिटिश इसाई, जब बंगाल में अपनी सत्ता एवं मिशनरी का कार्य स्थापित करते हैं, तब वे नोटिस करते हैं कि वहां पर उनका सबसे ज्यादा प्रतिरोध वैचारिक रूप से ब्राह्मण वर्ग से होता है। अपितु, वहां की जितनी भी प्रजा है वह मन के विचार से सहमति रखती है उन्हें तो अपने साथ में तो लाना था। अतएव, यदि आप 1814 ई में 'कोर्ट आफ डायरेक्टर' का ऑर्डर पढ़ेंगे तो आप पाएंगे, कि जो कन्वर्ट हुए 'इंडियन क्रिश्चियन' थे, उन्हें भी बहुत सारे ईट इंडिया कंपनी ऑफिसों से बाहर कर दिया गया था, जैसे कि मुंसिफ, वकील ऑफिसर, सुधर-अमीन, सिविल जज यह सब केवल ब्राह्मण ही बन सकते थे, दूसरा कोई नहीं। यह सब बंगाल एवं तमिलनाडु में हो रहा था.
👉1814 ई में कोर्ट के दिए आदेशानुसार, कनवर्टेड क्रिस्चन थे उन्हें भी बाहर कर दिया गया था, इससे जो कन्वर्ट हो गया, उसे कोई लाभ नहीं होगा, तो फिर कोई क्यों क्रिस्चनिटी में कन्वर्ट होगा। उन्हें अपनी गलती एहसास हुआ, ततपश्चात 1831 ई में 'कोर्ट ऑफ डायरेक्टर' ने इसपर प्रश्न उठाया औऱ कहा कि यदि कोई क्रिस्चन बन जाए तो इसलिए उसे किसी सरकारी पद न देना, वह दूसरों की तुलना में कम लाभप्रद स्थिति में होता है।[F]
[F] Source: Public Despatches from England to Fort William, 2 February 1831
👉2. जब मार्च 1826 ई. में Committee of Public Instruction, Madras, बनती है जो यह निर्णय लेती है कि उनकी तो एजुकेशन शिक्षा पॉलिसी बनाए। इस पॉलिसी के अनुसार, विद्रोह या किसी विरोध की संभावना से बचने हेतु, उस कमिटी में निर्णय लिया गया, कि भारत के परम्परागत जो शिक्षक शिक्षा का कार्य करने वाले हैं उनके साथ ही शिक्षण जारी रखना चाहिए। और इसी आधार पर उन्होंने केवल ब्राह्मणों का चुनाव शिक्षक के रूप में करना आरम्भ कर दिया।
👉इसके अगले दस वर्ष में मैकाले ने, 1835 ई में भारतीय गरुकुल शिक्षा पद्धति को पलट कर, अंग्रेजी माध्यम की औपनिवेशिक शिक्षा लागू कर दिया। मैकाल का वह कथन तो आप सबको पता होगा ही जिसमें वह कहता है "वह कहता है कि हमारे लिए असंभव है कि हम सभी को शिक्षा दे पाए इसलिए हमें एक ऐसे 'क्लास' को बनाने की आवश्यकता है जो हमारे और उन मूल भारतीय के बीच में एक 'माध्यम' बने, "जिनका रक्त एवं रङ्ग भारतीय होगा, लेकिन उनका स्वाद इंग्लिश होगा, उनका विचार इंग्लिश होगा, उनका मोरल इंग्लिश होगा, उनका बुद्धिमत्ता भी इंग्लिश होगा। इस क्लास का उपयोग यहाँ की बोली को सुधार कर, उसमें पश्चिमी Science के शब्दों से समृद्ध किया जाएगा, और फिर उसे डिग्री गाड़ी के रूप में प्रस्तुत, भारत के लोगों को जानकारी उपलब्ध कराएंगे।" (G, Point 34)
👉#लॉर्ड_मैकाले ही था जिसने कहा था कि मैं संस्कृत किताबें छपवाना बंद कर दूंगा। बनारस और कोलकाता के संस्कृत कॉलेज को पढ़ाना बंद कर दूंगा। आगे कहता है यदि हम हिंदुओं के संस्कृत कॉलेज को बचाए रखें तो यही हमारे लिए बहुत है, लेकिन वहाँ पर यदि किसी को भी एक भी छात्रवृत्ति नहीं दिया जाएगा। 1835 ई में मैकॉले ने, 1813 ई में बने ब्रिटीश गवर्नमेंट एक्ट को न मानने के लिए कहता है। इसी के तहत कहता है कि हमें मात्र इंग्लिश में शिक्षा देना चाहिए। (G, Point 33)
[G] Source: Minute by the Hon'ble T. B. Macaulay, dated the 2nd February 1835,Point 34 and 33.
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प्रश्न: मैकाले के द्वारा 1835 ई में अंग्रेजी इसाई शिक्षा लागू करने से पहले, भारत की शिक्षा व्यवस्था कैसी थी? क्या शुद्रों को शिक्षा मिलती थी?
उत्तर: 1835 ई से पहले, गरुकुल द्वारा शिक्षा दिए जाते थे। ब्राह्मण शिक्षा दिया करते थे। शुद्रों की संख्या तो ब्रह्मणो की तुलना में चार गुना अधिक थी।
👉1820 से लेकर 1835 के बीच भारत की शिक्षा परिषद के बारे में अधिक जानकारी के लिए "ईट इंडिया कम्पनी'' ने बहुत सारी सर्वे कराया था। William Adam ने बंगाल-बिहार का जोड़ा सर्वेक्षण किया था उसके अनुसार वहां पर 'एक लाख' के आसपास पाठशालाएं हुआ करती थी। इसी तरह चेन्नई Thomas Munro ने जो सर्वे किया था उसके मुताबिक प्रत्येक गांव में एक पाठशाला थी। मुंबई प्रेसिडेंसी के लिए G L Prendergast नामक वरिष्ठ अधिकारी ने सर्वे किया था उसके अनुसार गांव बड़ा हो या छोटा, हर एक गाँव में पाठशालाएं थी। बड़े गांव में तो एक से अधिक पाठशालाएं थी। इसी तरह, 1850 ई के बारे में, पंजाब प्रेसिडेंसी में Dr G. W. Leitner ने अपने सर्वे में ऐसी ही बात कही। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें चारों वर्णों के लोग पढ़ते थे और शूद्र की संख्या को ब्राह्मणों की तुलना में 4 गुना अधिक थी। [H]
[H] Source: For details of report please see The Beautiful Tree by Dharmpal
[आप सबको यह प्रश्न पूछना चाहिए कि जब तक शिक्षा ब्राह्मणों के हाथ में थी, शुद्रों को पूर्ण रूप से शिक्षा मिलती थी। फिर अचानक से 1835 ई के मैकाले द्वारा इसाई शिक्षा लागू करने के बाद ऐसा क्या हुआ कि शुद्रों को शिक्षा नहीं मिलने लगा।]
क्या यह प्रश्न माननीय डॉ अम्बेडकर ने अपने जीवन में कभी पूछा? ख़ैर!
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प्रश्न: 1871 के भारत जनगणना में ब्राहम्ण वुरुद्ध तो कोई बात नहीं है। किसी को भी low caste नहीं कहा गया है? फिर अचानक से यह ब्राहम्ण विरुद्ध सुर कैसे उठने लगे? 1881 ई में Low caste और Low tribe कहाँ से जोड़ दिए गए?
उत्तर: अंग्रेज 1871 ई. में भारत में जनगणना कर रहे थे तो उन्हें "कास्ट" को समझने में बहुत समस्या हो रही थी। अतएव 1872 ई में ईसाई मिशनरी M A Sheering को यह कार्य सौंपा। उसने इस विषय पर विशेष अध्धयन कर, 1872 ई में "हिंदू ट्राइब एंड कास्ट (Hindu Tribe And Caste)" नमक "तीन वॉल्यूम'' की पुस्तके पब्लिश के थी। इसके अनुसार वह बहुत आश्चर्यचकित होता है कि आजतक क्यों किसी ने "कास्ट" के आधार पर इनको आपस में बांटने का प्रयास नहीं किया। यह वही है जो, मैक्स मुलर द्वारा 1847 ई में ब्राहम्ण को Arrian Tribe of White Caucasist Race की बातों को आगे बढ़ाता है। उसके अनुसार ब्राह्मण सबसे ऊपर, उसके नीचे क्षत्रिय, फिर उसके नीचे सभी down कास्ट आते हैं। दरसल यह सब बातें मैक्स मुलर ने भी 1847 ई में कही थी।[I]
[मैक्स मुलर के बाद, Down/Lower Caste का उपयोग M A Sherring किया। 1871 जनगणना के अनुसार कोई भी Lower कास्ट नहीं था]
👉वह, विवाह के आधार पर विभिन्न कास्ट होने की बात करता है। आगे कहता है जो अलग-अलग "कास्ट और ट्राइब" हैं, वे आपस में विवाह नहीं करते। यह बहुत हास्यास्पद है कि वह कभी कास्ट को वर्ण से जोड़ता है और कभी विवाह से (I, Page 218 । दरसल वह यह सब अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहा रहा था, शास्त्रगत नहीं। वह पहले से भारत में कार्य कर रहें Oriantlist (बायबल के अनुसार भाषा बोली का असत्य अध्ययन करने वाले) और Anthropolist (बायबल के अनुसार मानव का विकास का असत्य अध्ययन करने वाले) के द्वारा बायबल के आधार पर की भारतीयों की व्याख्या को आपस में जोड़ने का प्रयास करता है।
👉चूंकि वह ईसाई मिशनरी था, उसे इस बात का एहसास है कि लोग सामूहिक रूप से लोग कन्वर्ट नहीं हो रहें थे। इसलिए वह ब्राह्मणों एवं कास्ट को निशाना बनाते हुए निम्नलिखित बातें कहता है:
➡️a) वह कहता है कि जब Arian यहाँ पर आए तो, उस समय कास्ट नहीं था। बाद में उन्हीं Brahmin Tribe ने इस "कास्ट" का कांसेप्ट था। फिर ब्राह्मणों ने एक उद्देश्य के तहत यह कास्ट बनाया, नहीं तो उनका अस्तित्व ही नहीं होता, ब्राहम्ण ने "बचपन से हिन्दुओं को ऐसा बनाया।"[I, Pages 231, 235, 245]
➡️b) "कास्ट" ने हिन्दुओं को गुलाम बना दिया है। हिन्दुओं की यह विश्वसनीयता एवं गुलामी वाली मानसिक स्थिति, "कपटी (Wily), प्यासे (Thristy) ब्राहम्ण" को एक सुनहरा अवसर देता है कि वह सब पर शासन स्थापित कर सकें। [I, Page 220]
➡️c) यह कपटी (wily) ब्राहम्ण है जो सारी गलती करता है। ब्राहम्ण केवल कपटी नहीं, बल्कि वह घमंडी, अभिमानी, स्वार्थी, अत्याचारी, असभ्य, लालसी है। [I,Pages 225, 226]
➡️d) वैदिक काल के बाद कास्ट की उत्तपत्ति, ब्राह्नणों की साजिश है। वही उसके मूल निर्माता हैं। यह उनकी बनाई हुई चीज है। [I, Page, 231]
➡️d) कास्ट मानव सुख का शत्रु है। कास्ट बौद्धिक स्वतंत्रता का विरोध है। कास्ट प्रगति के विरुद्ध है। कास्ट कोई समझौता नहीं करती है। कास्ट के संबंध, रिलिजन से भी अधिक मजबूत है। कास्ट अत्यधिक स्वार्थी है। [I,Pages 274-96]
➡️e) वह आशा करता है कि हम भारतीयों बदलाव ला सकते हैं लेकिन उसके लिए बहुत ही प्रभावी ''ब्राह्मण विरुद्ध'' भावना उत्पन्न करना पड़ेगा। हम सब को जगायेंगे और बताएंगे कि वे सब भी शिक्षित, सक्षम और बुद्धिमान हैं जितने ब्राह्मण हैं। [I, Pages, 280,292,296]
➡️f) वह आगे कहता कि "हम बड़े पैमाने पर हिन्दू समाज पर एक गहरा प्रभाव डालेंगे कि, "वे सब ब्राह्मण की जड़, शाखा को समूल नष्ट (Annihilate) कर सकेंगे।" [I, Page 292]
[थोड़ा ध्यान दीजिए, डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ऐसी ही एक पुस्तक लिखी थी, Annihilation of caste। साथ साथ मैक्स मुलर के अनुसार जो बौद्ध-ब्राह्मण की परिकाल्पनिक संघर्ष को वास्तविकता में परिवर्तित करते हैं। ]
[I] Source: M. A. Sherring, Hindu Tribes and Castes, 3 vols, 1872.
👉आप 1881 ई में जनगणना को देखिए अब उसमें Lower caste और Lower Tribe शब्दों का बड़ी चतुराई से उपयोग किया गया यह।[G]
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प्रश्न: 1872 ई में मुस्लिमों को बैकवर्ड पहचान बनाने के बाद, इस आधार का कहाँ और कैसे उपयोग किया?
उत्तर: 1872 ई. में इस तरह एक दिखावटी विशेष पहचान बनाने के पश्चात, दोनों, सरकार एवं क्रिश्चियन मिशनरीज के द्वारा, “शिक्षा एवं ब्रिटिश सरकारी नौकरी” को एक “पॉपुलर इंस्ट्रक्शन” (लोकप्रिय हथियार) के रूप में उपयोग किया जाने लगा भारत की जनता को और आपस में बाँटने के लिए.
👉हिन्दुओं को भी आपस में बांट, इसाई मिशनरी प्रेरित, Hunter's Education Commision, 1882 ई में लागू होता है, जो 1854 में बने Education Policy में बदलाव (सुधार) लाने हेतु लाई गई। इसी इसाई प्रेरित शिक्षा कॉमिशन में, 'कई समूहों को को विशेष व्यवहार (Classes requiring special treatment) की आवश्यकता है। इसके तहत वे लोग कभी 'मुख्य एवं प्रधान (Chief and Nobles)' उन्हें भी चिन्हित किया गया। 'Aborigines' और 'Low caste' भी इसके अंतर्गत आते थे, मुसलमानों एवं 'ग़रीब क्लास' थे, जिनकी निर्धनता ने इन्हें भी शिक्षा से वंचित कर दिया गया था। [J]
[यही Chief and Noble लोग आज OBC में आते हैं। उदाहरण: आप ध्यान दीजिए, माधव राव सिन्धिया, राज परिवार से हैं, उनकी कास्ट कुर्मी है, वे आज OBC में आते हैं।]
1882 में इसाई प्रेरित Education Commision में, 'फुले' का योगदान ध्यान देने वाली है। दोनो जन अमेरिकन मिशनरी से जुड़े हुए थे।
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यह वही समय होता है। ब्रिटिश सरकार बहुत सारे सर्वे करवाती है। और हर एक सर्वे में ब्राह्मण वर्ग ज्यादातर ब्रिटिश क्लर्क या शिक्षा में अधिक पाए जाते हैं। यह सब बंगाल तमिलनाडु में करवाते हैं।
इसी समय ब्रिटिश सरकार का रिटायर सिविल ऑफिसर A O Hume, 1883 ई में Congress की स्थापना करता है। बस यहीं से फिर वास्तविक खेल शुरू होता है। समस्त तमिलनाडु में Arian Tribe को आर्यन रेस बताकर, मैक्समूलर की परिकल्पना वाली कहानी स्कूलों कॉलेज में पढ़ाना आरम्भ हो चुका होता है।
अगले दशक में शुरू होता है। आरक्षण का खेल।
अगले 30 वर्ष में 3 करोड़ भारतीयों की मृत्यु अन्न के अभाव एवं हैजा, प्लेग, फ्लू से होती है। [K]
[K]The case for India Will Durant, 1930, Page 34
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ब्राह्मण वर्ग इसलिए निशाने आए, चूंकि वे ही इसाई मिशनिंरी के कार्य में सबसे ज्यादा बाधक थे।
वे शिक्षक वर्ग से थे।
उनकी संख्या बहुत कम है। 8% भी नहीं। केरल, आंध्रप्रदेश में तो 2% भी नहीं है। आज के इस वोट बैंक में इनकी कोई वैल्यू नहीं है।
अकेडमिया में उनके विरुद्ध यही सब कूड़े पढ़ाए जा रहें हैं। इतिहास के नाम पर। रोमिला थापर इसमें सबसे प्रबल हैं जो यह कार्य की हैं।
उनकी मूर्ख श्रेष्ट बोधता भी एक कारण है।
आर्थिक इतिहास के बोध की कमी।
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