ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 164वें सूक्त की 46वीं ऋचा कहती है-
'इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥
ऋग्वेद के मंत्रदृष्टा ऋषि कहते हैं:- इंद्र,मित्र, वरुण,अग्नि,अहूरमज्दा,दिव्य,सूर्य,वायू ,यम
मातिरिश्वान इत्यादि सभी उपाधियां उस एक ही परम सत्य की हैं,जिसे सज्जन और आस्तिक विद्वान नाना प्रकार के नामों से बखान किया करते हैं!
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