वैसे तो भारतीय समाज के लिए संविधान में अंगीकृत सर्वधर्म समभाव* और राज्यसत्ता के लिए धर्म निरपेक्षता* ही यथेष्ट है! किंतु ज्ञान मार्ग पर आरूढ़ योगियों के लिए,पाखंड पूर्ण समझौते से इतर कटु यथार्थ तथ्य ही अभीष्ट हैं!आजकल भारतीय योग के ग्लोबलाईजेशन की भांति ही भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की प्रत्याशा भी बलवती हो रही है! इस संदर्भ में मुस्लिमों,बौद्धों, अंग्रेजों और वामपंथी इतिहासकारों का नजरिया लगभग एक जैसा ही नकारात्मक और सनातन विरोधी है! अत: स्वाभाविक है कि न केवल हिन्दू सवर्ण ओबीसी,बल्कि दमित,शोषित, दलित आदिवासी खेमों में खंडित भारतीय समाज यथार्थ के धरातल पर वैज्ञानिक तार्किकता के साथ अपने इतिहास का सिंहवालोकन करने हेतु प्रयत्नशील है!
आधुनिक काल के अंग्रेजी,फारसी,बौद्ध लेखकों में झूठ लिखने की जितनी पुरानी परम्परा है,जैन हिंदू पुराण पंथी पंडितों में गप्प लिखने की उस से ज्यादा पुरानी परंपरा रही है!किंतु आधुनिक साइंस और नव तकनीक ने यथार्थ के उदघाट्न में महत्वपूर्ण योगदान दिया है! उदाहरण के लिए तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय के जलाए जाने तथा हिंदू बौद्ध धर्म स्थल नष्ट किये जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के पर्याप्त साक्ष्य भारतीय आर्केलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के पास उपलब्ध हैं !
बुद्ध ,महावीर,जीवक और शैव -शाक्त पंथ में ऐंसा कोई नहा हुआ जो शास्त्रार्थ में आदि शंकराचार्य से न हारा हो!बौद्ध शिक्षकों ने पशुबलि के नाम पर यज्ञ की निन्दा की,पर स्वयं बौद्ध विहार में दैनिक मांसाहार करते थे। आत्मा का अस्तित्व नहीं मानते थे पर सिद्धार्थ-गौतम के संयुक्त रूप की महानता दिखाने के लिए जातक कथा में उनके १०० जन्मों की कथा लिखी गई! योग दर्शन को योगाचार, महाविद्या का नाम प्रज्ञा पारमिता कहकर उनके मार्ग को कभी महायान, हीनयान कभी वज्रयान का नाम दे दिया।
वे सनातन धर्म के विरोध के लिए मार खा कर भी मुस्लिम लुटेरों का समर्थन करते रहे, अतः प्राण निकलने पर भी यह नहीं कह सकते कि बख्तियार खिलजी ने ६ मास तक काफिरों का नालन्दा विश्वविद्यालय जलाया तथा हजारों छात्र -शिक्षकों की हत्या की। इनसे अच्छे तो बख्तियार खिलजी के इतिहास लेखक हैं जिन्होंने गर्व से विश्वविद्यालय जलाने का वर्णन किया है।
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