शनिवार, 5 मार्च 2022

मीडिया किसी चीज को सही साबित करना चाहती है।

 पैराडाॅक्स क्या बला है?

स्टुडेंट्स ने टीचर से पूछाः
पैराडाॅक्स का क्या अर्थ है?
टीचर ने कहाः
इसके लिये एक उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ।
मान लो कि दो व्यक्ति मेरे पास आते हैं एक बिल्कुल साफ सुथरा और दूसरा बेहद गंदा होता है। मैं उन दोनों को मशविरा देता हूँ कि वे नहा कर साफ सुथरा हो जाएं।
अब तुम लोग बताओ कि उनमें से कौन नहाएगा?
स्टुडेंट्स ने कहाः जो गंदा है वो नहाएगा।
टीचर ने कहाः
नहीं, बल्कि साफ व्यक्ति ऐसा करेगा क्योंकि उसे नहाने की आदत है जबकि गंदे को सफाई का महत्व मालूम ही नहीं।
अब बताओ कौन नहाएगा?
स्टुडेंट्स ने कहाः साफ व्यक्ति।
टीचर ने कहाः
नहीं, बल्कि गंदा व्यक्ति नहाएगा क्योंकि उसे सफाई की जरूरत है। बस, अब बताओ कौन नहाएगा?
स्टुडेंट्स ने कहाः जो गंदा है वो नहाएगा।
टीचर ने कहाः
नहीं, बल्कि दोनों नहाएंगे क्योंकि साफ व्यक्ति को नहाने की आदत है जबकि गंदे को नहाने की जरूरत।
अब बताएं कौन नहाएगा?
स्टुडेंट्स ने कहाः दोनों नहाएंगे।
टीचर ने कहाः
नहीं कोई नहीं क्योंकि गंदे को नहाने की आदत नहीं जबकि साफ को नहाने की जरूरत नहीं। अब बताएं कौन नहाएगा?
स्टुडेंट्स ने कहाः कोई नहीं।
स्टुडेंट्स ने फिर कहाःटीचर से,
आप हर बार अलग जवाब देते हैं और हर जवाब सही मालूम पड़ता है। हमें सही जवाब कैसे मालूम होगी?
टीचर ने कहाः
पैराडाॅक्स यही तो है। आजकल महत्वपूर्ण ये नहीं है कि वास्तविकता क्या है। महत्वपूर्ण ये है कि मीडिया किसी चीज को सही साबित करना चाहती है।
जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पहले डीजल पेट्रोल की बढ़ती कीमत पर आंसू बहाती थी आज वही मीडिया बढ़ती कीमत को राष्ट्रहित और राष्ट्रनिर्माण में सही साबित कर रही है।
अब पेट्रोल के शतक लगाने पर ना अमिताभ ट्वीट कर रहे ना अक्षय कुमार और ना ही सचिन। अब ना वो सलवारी चालीस रूपये लीटर पेट्रोल बेच रहे बल्कि सौ रूपये होने पर इसे राष्ट्रनिर्माण में सहयोग बता रहे हैं।
अब सरकार ने मीडिया के सहारे नैरेटिव सेट कर ही दिया है "डीजल पेट्रोल महंगा है तो क्या हुआ खर्च विकास कार्य में ही हो रहा है ना" राष्ट्र निर्माण में योगदान करें और खुश रहें। ख़ैर, जनता को तो आदत हो ही जाती है थोड़े दिनों में महंगाई सहने की...
इसीलिये हमें भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों के सपनों की याद आती है!

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