एक दफा बोकुजु नामक एक साधू किसी गाँव की गली से होकर गुज़र रहे थे !
अचानक कोई उनके पास आया और उसने बोकुजु पर छड़ी से प्रहार कर दिया !बोकुजु जमीन पर गिर गये ;उस आदमी की छड़ी भी उसके हाथ से छूट गयी और वह भाग गया !
बोकुजु संभले और गिरी हुई छड़ी उठाकर वे उस आदमी के पीछे यह कहते हुए भागे -रुको अपनी छड़ी तो लेते जाओ !बोकुजु उस आदमी तक पहुँच गये और उसे वह छड़ी सौंप दी !इस बीच यह घटनाक्रम देखकर वहां भीड़ लग गयी !किसी ने बोकुजु से पूछा -इस आदमी ने तुम्हें इतनी जोर से मारा लेकिन तुमने उसे कुछ नहीं कहा ?
बोकुजु ने कहा - हाँ लेकिन यह एक तथ्य ही है उसने मुझे मारा !वह बात वहीं समाप्त हो गयी उस घटना में वह मारने वाला था और मुझे मारा गया बस !यह ऐसा ही है जैसे मैं किसी पेड़ के नीचे से निकलूँ या किसी पेड़ के नीचे बैठा होऊँ और एक शाखा मुझ पर गिर जाये !तब मैं क्या करूंगा ;मैं कर ही क्या सकता हूँ ?
भीड़ ने कहा -पेड़ की शाखा तो निर्जीव शाखा है लेकिन यह तो एक आदमी है !हम किसी शाखा से कुछ नहीं कह सकते ;हम उसे दंड नहीं दे सकते !हम पेड़ को भला-बुरा भी नहीं कह सकते क्योंकि वह एक पेड़ ही है ;वह सोच-विचार नहीं सकता !
बोकुजु ने कहा -मेरे लिए यह आदमी पेड़ की शाखा की भांति ही है यदि मैं किसी पेड़ से कुछ नहीं कह सकता तो इस आदमी से क्यों कहूं ?जो हो गया वो हो गया मैं उसकी व्याख्या नहीं करना चाहता और वह तो हो ही चुका है वह बीत चुका है अब उसके बारे में सोचकर चिंता क्या करना ?
बोकुजु जी की क्षमाशीलता एवं उदारता को देख वहा उपस्थित भीड़ आश्चर्यचकित हो गयी !
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