यूपी विधानसभा चुनाव की वोटिंग संम्पन्न हो जाने के बावजूद अखिलेश यादव अभी भी चुनाव प्रचार मोड पर नजर आ रहे हैं!आज पत्रकारों को संबोधित करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग और यूपी प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं ! उनका कथन का लब्बोलुआब यह है कि एक्जिट पोल में भाजपा की जीत बताने का मतलब है EVM में गड़बड़ी !
कल [09-03-22 ] के एक्जिट पोल को अखिलेश ने सही मान लिया है,तभी तो वह घबराकर EVM -EVM जप रहा है! सवाल उठता है कि बाकी चार राज्यों के चुनावी एग्जिट पोल पर किसी ने अंगुली क्यों नही उठाई? दूसरी बात 10 मार्च के बाद आने वाले यूपी चुनाव परिणाम में यदि सपा जीत जाती है,तो क्या अखिलेश फिर से चुनाव कराने की मांग करेंगे?
क्योंकि वे खुले आम ऐलान कर रहे हैं कि "चुनाव में धांधली हुई है और EVM में हेर फेर हुआ है" यदि यह आरोप सच है ,तो सपा की जीत होने की स्थिति में अखिलेश यादव दुबारा चुनाव कराए जाने की मांग करेंगे?
बेशक चुनावों में भ्रस्टाचार हुआ होगा, किंतु दुनिया जानती है कि पूर्व में सपा के गुंडे जितनी हेराफेरी करते रहे हैं,तब अखिलेश ने कभी उज्र नही किया! ये दुहरे मापदंड क्यों? और यदि EVM से चुनाव जीतना आसान होता तो BJP बंगाल में क्यों हारी?
EVM पर इतनी पकड़ होती तो यूपीमें मोदी जी और योगी जी को रात दिन गहन चुनाव प्रचार करने की इतनी आवश्यकता नही थी! यदि बाईचांस पांचों राज्यों के आगामी सभी चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में नही आये तब चुनावी धांधली के आरोप का क्या होगा?
मान लीजिये 10 -11 मार्च को एग्जिट पोल के बताए अनुसार मिले जुले परिणाम आते हैं,तब तो भाजपा और चुनाव आयोग को चाहिये कि मानहानि का मुकद्मा दायर करे! और अखिलेश यादव को गुंडे आजम खां के पास वाली बैरक में भेज दे! इन जातिवादी नकली समाजवादियों को देश की नहीं अपने परिवार की चिंता है ! इसके अलावा इनको किसी की फिक्र नही!
एक जमाना था,जब बहिनजी के सामने मंच पर कलेक्टर या मंत्री जूता पहिनकर नही जा सकता था ! वही बहिनजी आज जीरो हो चुकीं हैं! जिस पार्टी को मान्यवर काशीराम ने राष्ट्रीय पार्टी बनाया था,उसी बसपा को यूपी में सिर्फ एक ही सीट मिली है! वो भी कोई तीसमारखाँ उमाशंकरसिंह ने अपने बल पर जीती है !
बसपा सुप्रीमो बहिनजी का ताज-नोटों की मालाओं और उनके अहंकार में तब्दील होकर भाजपा का भला कर गया! यह एक अकाट्य सत्य है कि जब मोदी जी ने यूपी के एक दलित को राष्ट्रपति बना दिया तो बदले में दलित बहुजन समाज ने अपने आपको सदा दलित कहलाने के बजाय और बसपा का गुलाम बनने के बजाय सनातनी *हिंदू* कहलाना पसंद किया!
इस तरह बहिनजी का तथाकथित *नॉन ट्रॉस्फरेबिल वोट बैंक* श्रीरामलला के काम आ गया!
जो राजनैतिक पार्टियां किसान आंदोलन में जी जानसे जुटीथीं,उनको पंजाबके किसानों ने धता बता दिया!इसका मतलब किसान आंदोलन पूरी तरह गलत था! दरसल यह बड़े किसानों का षडयंत्र था! किसानों के साथ साथ माबदौलत भी अपने तथाकथित विद्वान नेताओं के झाँसे में आ गये कि मोदी जी किसान विरोधी हैं,भाजपा जाटों की शत्रू है,बगैरह ..बगैरह...! हम सब पानी पी पीकर मोदी सरकार को कोसते रहे!
जबकि पंजाब और यूपी के चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो गया कि किसानों की मौतों के लिये मोदी सरकार नही बल्कि अकाली दल खालिस्तानी ऐजेंट और पड़ोसी दुश्मन के ऐजेंट जिम्मेदार रहे हैं!
जिन राजनैतिक दलों की उम्र 100 साल की होने जा रही है,उन बूढ़े पुराने हरल्ले दलों की हर जगह जमानतें जब्त हो रहीं हैं ! जबकि *आप* नामक पार्टी की उम्र पंजाब में दो महिने पुरानी भी नही है! किंतु फिर भी *आप* ने सबका सफाया कर दिया!
सवाल उठता है कि जनता को समाजवाद या साम्यवाद चाहिये कि नही? शोषण से मुक्ति चाहिये या नही? यदि उन्हें *आम आदमी पार्टी* या भाजपा पर यकीन है तो फिर हम किसके लिये आंदोलन करते रहे हैं? किस के लिये,क्यों हलकान होते रहें हैं?
*लेके रहेंगे आजादी* वाले जिस कन्हैया को लोग वामपंथ का हीरो मान रहे थे,उसकी औकात तो विधायक क्या पार्षद जितनी भी नही रही! वह बंदा दल बदल कर गुमनामी के अंधेरे में खो गया! हमारे क्रांतिकारी नेता JNU में जाकर उस दलबदलू की और टुकड़े ट़कड़े गैंग पैरवी करते रहे, अब उन्हें जनता वोट क्यों दे? जमानत जब्त क्यों न होगी? चुनावमें राजनीतिक,सामाजिक जातीय और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाले जीत गये ,हमारे चंद साथी चुनाव में खड़े थे,वे अपनी जमानत भी नही बचा पाए!
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