जवानी जब पुरषार्थ के श्रम सिंधु में नहाती है।
जीवन संध्या उसकी खुद खुशनुमा हो जाती है।।
जिंदगी रहें न रहें कोई फर्क नहीं पड़ता उनको,
जिनकी सार्थक जिंदगी कुछ असर छोड़ जाती है!
आभासी जगत का सनातन सत्य है जीवन मरण,
सिर्फ 'इंसानियत' ही इंसान को सुर्खुरू बनाती है !।
ताकत के नशे में चूर तानाशाह हो जाएँ गर जंगजू,
तो लाखों खुशहाल जिंदगियाँ बर्बाद हो जाती हैं!
श्रीराम तिवारी
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