रविवार, 20 मार्च 2022

जाग मछन्दर गोरख आया


जब तक यूपी के चुनाव परिणाम नहीं आये, तब तक मैंने तहेदिल से चाहा था कि भले ही बदनाम कांग्रेस यूपी की सत्ता में आ जाए , भले ही भाजपा ही पुन: क्यों न सत्ता में आ जाए,किंतु जातिवादी सपा और बसपा का पटिया उलाल होना चाहिये! और तमन्ना पूरी हो गई ! जबतक जातिवादी नकली समाज वादी मैदान में रहेंगे, तब तक सर्वहारा वर्ग कन्फ्यूज होता रहेगा, लेकिन कट्टर पूँजीवाद और सर्वहारा वर्ग के बीच सीधे संघर्ष की संभावना जागेगी! ऐतिहासिक भौतिकवादी द्वंदात्मक सिद्धांत का यही निष्कर्ष है!
यदि मजदूर किसान चाहेंगे कि पूँजीवादी कुनबा कामयाब न हो, तो उन्हें चाहिये कि अपने बच्चों को किसी जातिवादी गुट या जाति आधारित राजनैतिक पार्टी से दूर रखें! और जनता के लिये संघर्ष करने वाले राष्ट्रीय दलों का साथ दें ! हालाँकि अभी तो यूपी में सब कुछ उलटा -पुल्टा हो गया है! शोषित पीड़ित वर्ग आपस में बुरी तरह बटा हुआ है! इसलिये एक भी वामपंथी विधायक यूपी विधान सभा के अंदर नही पहुंचा ! किसी ने ठीक ही कहा है 'हर किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता'
यूपी की जनता ने भरपल्ले से दो तिहाई बहुमत के साथ भाजपा को जिता दिया।ऐंसा लगा जैसे दिल के अरमाँ आंसुओं में बह गए ! पुरानी भदेस कहावत याद आ गयी -'कौओं के कोसने से ढोर नहीं मरते' ! अब यदि मोदी जी और भाजपा नेता किसी काले चोर को मुख्यमंत्री बनायें या किसी योगी को मुख्यमंत्री बनायें,बहुमत का सम्मान करें या मजाक उड़ाएं यह उनका आंतरिक मामला है। हमें तो गोस्वामी तुलसीदास की यह चौपाई स्मरण रखना है की ''कोउ होय नृप हमें का हानी ,चेरी छोड़ होहिं का रानी ''!
मैं यूपी का मतदाता नहीं हूँ ,भाजपा समर्थक नहीं हूँ ,फिर भी यूपी की जनता के जनादेश का आदर करता हूँ !लेकिन भारतीय लोकतंत्र की हत्या होते नहीं देख सकता। पौने तीन सौ में से क्या एक भी भरोसेमंद भाजपाई विधायक नहीं है जो एक विवादास्पद योगी पर भरोसा किये जाने को मजबूर हैं? वह व्यक्ति 'योग्य' कैसे हो सकता है जिसे मजहबी उन्माद फैलाने के सिवाय कुछ आता ही नही! यू पी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला प्रदेश है,वहाँ की आम जनता को कम से कम इस व्यक्तिवादी अंधेरगर्दी पर अपना आक्रोश अवश्य व्यक्त करना चाहिये ! मोदीजी उनके सिपहसालार यूपी के नवनिर्वाचित 272 विधायकों में से किसी एक को भी मुख्यमंत्री लायक नही समझते तो यह यूपी की जनता के जनमत का अपमान है ! यदि जनता का कोई अपराध नहीं तो समस्त चुने गए विधायकों की अनदेखी क्यों ?
यदि विधायकों को उनकी काबिलियत न देखकर जातिगत आधार पर मंत्रिमंडल में समायोजित करके यूपी का मंत्रिमंडल बनता है, तो बसपा सपा और भाजपा में क्या फर्क रह जाएगा?
यूपी की जनता को और नव निर्वाचित विधायकों को भी गंभीरता से सोचना होगा कि मुख्यमंत्री के चुनाव में और सरकार के गठन में कहीं कोई चूक तो नहीं हुई ? कहीं लोकतंत्र का मजाक तो नहीं उड़ाया जा रहा है ?क्योंकि असली गोरखपंथी योगी सन्यास धारण कर घर-घर 'भवति भिक्षाम देहि'की अलख जगाता है !वह अपने आराध्य - महादेव शिवकी भांति 'अलख निरंजन' में नित्य लींन रहता है! वह सत्ताके लिए लोकतंत्र की उपासना नहीं करता!वह हिन्दू, मुस्लिम ,दलित, ब्राह्मण ,ठाकुर से भी परे होता है !क्या श्री आदित्यनाथ वाकई ऐसे ही सिद्ध योगी हैं ? यदि हाँ तो फिर उन्हें गोस्वामी तुलसीदास जी का यह आप्त वाक्य क्यों याद नहीं रहा कि- 'संतन्ह को का सीकरी सों का काम '?
मोदी जी ने स्वेच्छा से यदि आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाया है तब और अधिक चिंता की बात है क्योंकि यूपी विजय का श्रेय इन योगी जी को कदापि नहीं है। बल्कि मोदीजी अमित शाह के प्रयत्नों और सपा-बसपा के कुकर्मों के कारण यह विजय सम्भव हुई है। और यही कारण है कि जीते हुए विधायकों में से ही कोई एक नेता चुना जाना चाहिए था। लेकिन मोदीजी यदिकिसी मजबूरी में योगीको पुन: यूपीका सीएम बना रहे हैं,तो यह हिंदू समाज को जातियों में बाँटने और सिर फुटौवल को बयाँ करने के लिए काफी है!इससे यह सावित होता है कि यूपी में जीते हुए नेताओं पर मोदी जी का नियंत्रण नहीं है। जब अपनी पार्टी पर ही उनका नियंत्रण नहीं है, तो यूपी की जनता का उद्धार वे कैसे कर सकेंगे ?
यूपी चुनाव में सपा,वसपा तथा कांग्रेस की हार के बहाने पिछड़ावाद,दलितवाद और अल्पसन्ख्यकवाद के चुनावी सिद्धांत की बुरी तरह धुनाई हुई है। ऊपर से तुर्रा यह कि जले पर नमक छिड़कते हुए कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया है। लेकिन इस दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावाद से लड़ने का माद्दा केवल उसी में हो सकता है जो धर्मनिरपेक्षतावादी हो ,जो लोकतंत्रवादी हो ! असदुददीन ओवेसी या अखिलेश की औकात नहीं कि वे अपनी साम्प्रदायिक जातिवादी जुबान से योगी आदित्यनाथ या नरेद्र मोदी का सामना कर सकें ! क्योंकि नमक से नमक नहीं खाया जाता !
ईसा मसीह का बचन भी स्मरण रखें कि पापी को पत्थर वही मारे जिसके हाँथ पाप से अछूते हों !अखिलेश और आजमख़ाँ के खानदान को आइंदा अब अपनी भैंसों पर ध्यान देना चाहिए! क्योंकि यूपी पुलिस अब दूसरे काम पर लगाने वाली है। बुलडोजर कब कहाँ कहर बरपाता है,किसको पता?
असदुद्दीन ओवेसी को भी वोट कटवाकर भाजपा की मदद करने के बजा़य उन भटके हुए भारतीय युवाओं की फ़िक्र करनी चाहिए जो सीरिया-ईराक में आईएसआईएस की चपेट में आकर बर्बाद हो रहे हैं ! हिन्दु कौम से लड़ने की तो वे बात ही ना करें ! क्योंकि हिंदू तो सनातन से धर्मनिर्पेक्ष है! वैसे भी भारत की ७० % जनता धर्मनिरपेक्ष ही है! जिसमें हिन्दू,मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी शामिल हैं ! इस धर्मनिरपेक्ष जनता ने वक्त आने पर हर दौर में अपनी शानदार भूमिका अदा की है।
अभी यूपी चुनाव की बात कुछ जुदा है! वहां 40 सालसे जातिवाद और अल्पसंख्यकवाद का गठजोड़ हावी रहा!यूपी की प्रशासनिक मशीनरी में जातिवाद और पक्षपात की सड़ांध आ गई थी! इसलिए यूपी के प्रबुद्ध वोटर ने मजबूरी में योगी सरकार को पुन: एक अवसर और दे दिया!
लेकिन ध्यान रहे कि 'रहिमन हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार !' वक्त आने पर भारत की जनता शहीद भगतसिंह के वोल्शेविक सिद्धांतों को जरूर अपनाएगी !
यूपी की राजनीति में आगामी दिनों में कुछ भी सामान्य नही रहने वाला !क्योंकी जो 4 0 साल से जीम रहे थे वे अब खाली बैठे हैं! चूंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है ,इसलिये बड़ी द्वंदात्मक स्थिति निर्मित होने वाली है !भाजपाको पुन: बहुमत मिलने और योगी आदित्यनाथ के सी एम बनने से धर्म -अध्यात्म की पूँछ परख बढ़ने की सम्भावना भले हो,किन्तु साम्प्रदायिक वैमनस्य नही बढ़ना चाहिये!
यह स्मरण रहे कि नाथपंथ आप्तवाक्य है-
" जाग मछन्दर गोरख आया " आइन्दा नया मंत्र यह हो सकता है -"
"जाग माफिया बुल्डोजर आया " !
श्रीराम तिवारी !

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