अस्ति भाति प्रियं नाम रूप असपंचकम्!
अद्य त्रय ब्रह्म रूपं, जगतरूपं ततो द्वयम्!!"
अर्थ :-जिसका अस्तित्व सदा से है,जो कायनात में सबसे सुंदर है और जो हमारे मन को सबसे प्रिय लगता है-निराकार ब्रह्म का वही सच्चिदानंद स्वरूप है ! और उसको जो नाम रूप मनुष्य ने दिया है,वही जगत रूप है,वही माया है!
साभार :-वेदांत डिमडम
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