पुरवा हुम -हुम करे ,पछुआ गुन -गुन करे ,
ढलती जाए शिशिर की जवानी हो !
आया पतझड़ का दौर ,झूमें आमों में बौर ,
कूंके कुंजन में कोयलिया कारी हो !
वन महकने लगे ,मन मचलने लगे ,
ऋतू फागुन की आयी सुहानी हो !
करे धरती श्रृंगार , दिन वासंती चार ,
अलि ' करने लगे मनमानी हो !
फलें फूलें दिगंत ,गाता आये वसंत ,
हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो !
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